भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक दशक पुराने हत्या के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए दोषी की सजा को हत्या (धारा 302, भारतीय दंड संहिता) से घटाकर गैर-इरादतन हत्या (धारा 304, भाग 1) कर दिया। अदालत ने जोर देकर कहा कि इस घटना में “आकस्मिक लड़ाई और आवेश में किए गए हमले की संभावना को नकारा नहीं जा सकता,” जो 2014 में गोपाल भोसले की मृत्यु का कारण बना।
यह फैसला न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने [विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 13920/2024] में सुनाया। यह मामला महाराष्ट्र का था और इसमें अपीलकर्ता, सनी उर्फ संतोष धर्मू भोसले, को ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा और बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा उस सजा की पुष्टि को चुनौती दी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 21 मार्च 2014 की रात का है, जब महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक झगड़ा हुआ। अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता सनी उर्फ संतोष भोसले और मृतक गोपाल भोसले के बीच एक ऋण विवाद को लेकर heated argument हुआ। गवाहों ने बताया कि अपीलकर्ता ने राजेंद्र भोसले (PW-5) के घर के बाहर मौखिक बहस के बाद बांस की छड़ी से मृतक पर हमला किया।
इस हमले में गोपाल भोसले को सिर और चेहरे पर गंभीर चोटें आईं, जिसके चलते उन्हें खंडाला के ग्रामीण अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। घटना की प्राथमिकी (एफआईआर) शरद भोसले (PW-4) ने दर्ज कराई, जिसके बाद अपीलकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। ट्रायल कोर्ट ने सनी उर्फ संतोष को धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2020 में इस फैसले को बरकरार रखा।
अदालत में पेश की गई दलीलें
अपीलकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता डी.एन. गोबर्धन ने तर्क दिया कि यह मामला आकस्मिक उत्तेजना का है और यह पूर्व-नियोजित हत्या नहीं थी। उन्होंने गवाहों की गवाही में विरोधाभासों का हवाला देते हुए कहा कि घटना आवेश में घटी और बांस की छड़ी का उपयोग इस बात को दर्शाता है कि हत्या का इरादा नहीं था।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ धर्माधिकारी ने कहा कि गवाहों, विशेष रूप से मृतक की पत्नी सुनीता भोसले (PW-6) की गवाही, अपीलकर्ता की दोषसिद्धि साबित करती है। उन्होंने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की गवाही और सबूतों का गहराई से विश्लेषण किया। पीठ ने घटनाओं के विवरण में विरोधाभासों और हत्या के पूर्व नियोजित न होने पर बल दिया।
अदालत ने टिप्पणी की:
“यह संभावना कि मृतक ने अपीलकर्ता का पीछा किया और दोनों के बीच झगड़ा हुआ, जिसके दौरान आवेश में आकर हमला हुआ, नकारा नहीं जा सकता।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि बांस की छड़ी जैसे सामान्य हथियार का उपयोग पूर्व-नियोजित हमले का संकेत नहीं देता। चिकित्सीय साक्ष्य और हत्या के लिए कोई स्पष्ट उद्देश्य न होने से यह सिद्ध होता है कि यह घटना आकस्मिक झगड़े का परिणाम थी।
अदालत का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से अपील स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश दिए:
1. दोषसिद्धि में संशोधन: अपीलकर्ता की सजा को धारा 302 (हत्या) से घटाकर धारा 304, भाग 1 (गैर-इरादतन हत्या) कर दिया गया।
2. सजा अवधि पूरी मानी गई: अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता ने 12 साल से अधिक जेल की सजा काट ली है, जिसमें छूट भी शामिल है। इसे पर्याप्त माना गया।
3. रिहाई का आदेश: अपीलकर्ता, जो अक्टूबर 2024 से जमानत पर था, को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया और जमानत बांड समाप्त कर दिए गए।
गवाहों की गवाही
इस मामले में गवाहों की गवाही महत्वपूर्ण रही। मृतक की पत्नी सुनीता भोसले (PW-6) ने बताया कि कैसे उनके पति ने झगड़े में हस्तक्षेप किया और अपीलकर्ता का पीछा किया, जिसके बाद हमला हुआ।
राजेंद्र भोसले (PW-5) ने उनकी गवाही का समर्थन किया, लेकिन क्रॉस-एग्जामिनेशन में यह स्वीकार किया कि मुख्य गवाह मंगेश भोसले (PW-3) घटनास्थल से काफी दूर थे, जिससे उनकी गवाही पर सवाल उठे।