क्या स्टांप विक्रेता पीसी एक्ट के अंतर्गत ‘लोक सेवक’ हैं? सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति स्पष्ट की

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) की व्याख्या करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि लाइसेंस प्राप्त स्टांप विक्रेता ‘लोक सेवक’ की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। हालांकि, इस कानूनी स्थिति को स्पष्ट करने के बावजूद, कोर्ट ने आरोपी अमन भाटिया को इस आधार पर बरी कर दिया कि उनके खिलाफ अवैध रिश्वत मांगने का आरोप प्रमाणित नहीं हो सका।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने अपराध अपील संख्या 2613 / 2014 : अमन भाटिया बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) में यह निर्णय सुनाया। इस अपील में ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं 7 और 13(1)(d) सहपठित 13(2) के अंतर्गत की गई दोषसिद्धि को चुनौती दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

9 दिसंबर 2003 को शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अमन भाटिया ने ₹10 के स्टांप पेपर के लिए ₹12 की मांग की। उन्होंने एंटी करप्शन ब्रांच में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद छापा डाला गया। छापे के लिए ₹10 और ₹2 के नोटों को फिनॉलफ्थेलिन पाउडर से रंगा गया। आरोपी ने नोट लिए और उनके हाथ की धुलाई पर घोल का रंग गुलाबी हो गया।

इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी करार देते हुए 6 महीने और 1 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न

  1. क्या एक लाइसेंसधारी स्टांप विक्रेता भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 2(सी)(i) के तहत ‘लोक सेवक’ की परिभाषा में आता है?
  2. यदि हाँ, तो क्या आरोपी की सजा साक्ष्य के आधार पर न्यायसंगत है?

सुप्रीम कोर्ट की कानूनी व्याख्या: स्टांप विक्रेता ‘लोक सेवक’ हैं

कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 2(सी)(i) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सरकार द्वारा “फीस या कमीशन” के रूप में “पारिश्रमिक” प्राप्त करता है ताकि वह कोई सार्वजनिक कर्तव्य निभा सके, तो वह ‘लोक सेवक’ कहलाएगा।

READ ALSO  ज़िला उपभोक्ता न्यायालय अपने फैसलों को वापस नहीं ले सकतीं: उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग

दिल्ली प्रोविंस स्टांप रूल्स, 1934 के नियमों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:

“सरकार द्वारा दिए गए डिस्काउंट को ही विक्रेताओं के लिए पारिश्रमिक माना गया है। वे जनता के लिए स्टांप पेपर उपलब्ध कराने का सार्वजनिक कार्य करते हैं।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “कमीशन” शब्द का अर्थ इनकम टैक्स एक्ट के सन्दर्भ में नहीं बल्कि पीसी एक्ट के उद्देश्यपूर्ण संदर्भ में समझा जाना चाहिए।

सबूत के अभाव में आरोपी को बरी किया गया

हालांकि कोर्ट ने स्टांप विक्रेताओं को ‘लोक सेवक’ माना, परंतु आरोपी को दोषमुक्त करते हुए कहा कि रिश्वत की मांग का कोई ठोस सबूत रिकॉर्ड में नहीं है।

कोर्ट ने नीरज दत्ता बनाम राज्य (2023) 4 SCC 731 और पी. सत्यनारायण मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2015) 10 SCC 152 जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए दोहराया:

“सिर्फ रिश्वत की रकम की बरामदगी पर्याप्त नहीं है; अभियोजन को यह साबित करना होता है कि आरोपी ने अवैध gratification की मांग की थी।”

गवाहों के बयानों में विरोधाभास और मांग के स्पष्ट प्रमाण के अभाव में, कोर्ट ने कहा कि आरोपी की दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।

READ ALSO  तीस हजारी फायरिंग: कोर्ट ने आरोपियों की जमानत याचिका खारिज की

न्यायालय का निष्कर्ष

न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा:

“स्टांप विक्रेता सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते हैं और उन्हें सरकार द्वारा पारिश्रमिक (डिस्काउंट) प्राप्त होता है, अतः वे पीसी एक्ट की धारा 2(सी)(i) के अंतर्गत ‘लोक सेवक’ माने जाएंगे। लेकिन चूंकि अभियोजन रिश्वत की मांग साबित करने में विफल रहा, इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है।”

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles