आरोपी पर आईपीसी और एससी/एसटी एक्ट दोनों के तहत आरोप लगाए गए हैं तो धारा 14ए के तहत अपील स्वीकार्य है, ना कि सीआरपीसी के तहत जमानत आवेदन: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) के तहत स्थापित विशेष अदालतों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराधों की सुनवाई करने का अधिकार पुनः स्थापित किया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया द्वारा दिया गया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि आरोपी पर एससी/एसटी अधिनियम के तहत आरोप नहीं लगाया गया है, लेकिन वह अधिनियम के तहत स्थापित विशेष अदालतों में विचारणीय है, तो ऐसे मामलों में धारा 439 दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अंतर्गत जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं होगी।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह निर्णय दो जमानत याचिकाओं से संबंधित है:

1. फौजदारी विशेष जमानत याचिका संख्या 8192/2024: यह याचिका आवेदक चंद्रराज उर्फ चंद्रा द्वारा दाखिल की गई थी, जो कि एफआईआर संख्या 300/2024 से संबंधित है। एफआईआर में भादंसं की धारा 328, 376-डी, 506 के तहत अपराध दर्ज किया गया था, जो कि थाना बछरावां, जिला रायबरेली में दर्ज हुई थी। आवेदक पर शुरू में विभिन्न आईपीसी धाराओं और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत आरोप लगाया गया था, लेकिन चार्जशीट दायर होने के बाद, केवल आईपीसी धाराओं के तहत आरोप तय किए गए। एससी/एसटी अधिनियम के तहत विशेष अदालत ने पहले आवेदक की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

2. फौजदारी विशेष जमानत याचिका संख्या 8751/2024: यह याचिका ईशा और शांति नामक आवेदिकाओं द्वारा दाखिल की गई थी, जो कि एफआईआर संख्या 233/2024 से संबंधित है। एफआईआर में भादंसं की धारा 147, 148, 149, 323, 307, 302, 504, 506, 34 के तहत अपराध दर्ज किया गया था, जो कि थाना रौनाही, जिला अयोध्या में दर्ज हुई थी। एफआईआर में बाद में एससी/एसटी अधिनियम के तहत अतिरिक्त आरोप जोड़े गए, लेकिन आवेदिकाओं पर केवल आईपीसी के प्रावधानों के तहत आरोप तय किए गए। विशेष अदालत ने उनकी जमानत याचिकाएं भी खारिज कर दीं।

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कानूनी मुद्दे:

हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या जब आरोपी पर एससी/एसटी अधिनियम के तहत आरोप नहीं लगाया गया है, लेकिन उसे एससी/एसटी अधिनियम के तहत स्थापित विशेष अदालत में विचारणीय है, तो ऐसी स्थिति में धारा 439 सीआरपीसी के तहत जमानत याचिका स्वीकार्य होगी या नहीं।

– आवेदक के वकीलों द्वारा तर्क: 

  – चंद्रराज के वकील प्रशांत शुक्ला ने तर्क दिया कि चूंकि आवेदकों पर एससी/एसटी अधिनियम के तहत आरोप नहीं लगाया गया है, इसलिए उनकी जमानत याचिकाएं हाईकोर्ट द्वारा धारा 439 सीआरपीसी के तहत सुनी और तय की जानी चाहिए। उन्होंने कई पूर्व मामलों का हवाला दिया, जिसमें प्रमोद बनाम राज्य (विशेष जमानत याचिका संख्या 2447/2024) भी शामिल है, जहां एक समन्वय पीठ ने ऐसी जमानत याचिका स्वीकार की थी।

  – ईशा और शांति के वकील अनुज दयाल ने भी समान तर्क अपनाते हुए कहा कि विशेष अदालत का क्षेत्राधिकार केवल एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराधों तक सीमित है और आईपीसी के तहत अपराधों के लिए नहीं है।

– प्रतिवादी पक्ष के वकीलों द्वारा प्रत्युत्तर तर्क: 

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  – शिकायतकर्ता के वकील विवेक गुप्ता और अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 14-ए(2) के तहत वर्तमान जमानत याचिकाएं धारा 439 सीआरपीसी के तहत स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 14-ए(2) के तहत अपील ही आवेदकों के लिए एकमात्र उपाय है। इस तर्क को गुलाम रसूल खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में पूर्ण पीठ के निर्णय द्वारा समर्थन दिया गया, जिसमें कहा गया था कि विशेष अदालत के आदेशों के खिलाफ अपील ही एकमात्र उपाय होगा।

न्यायालय के अवलोकन और निर्णय:

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं और कई महत्वपूर्ण कानूनी बिंदुओं को स्पष्ट किया:

1. एससी/एसटी अधिनियम के तहत विशेष अदालतों का क्षेत्राधिकार: न्यायालय ने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम के तहत विशेष अदालतों को आईपीसी के तहत अपराधों की सुनवाई का अधिकार है, यदि ऐसे अपराध एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराधों से जुड़े हुए हैं। न्यायालय ने प्रवीण एस. वोडेयार बनाम कर्नाटक राज्य (2021) के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि जब तक क्षेत्राधिकार पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध न हो, विशेष अदालत आईपीसी के तहत अपराधों की सुनवाई कर सकती है।

2. सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत याचिकाओं की स्वीकार्यता: न्यायालय ने कहा कि चूंकि विशेष अदालतों को आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम दोनों के अपराधों को संयुक्त रूप से निपटाने का अधिकार है, इसलिए एससी/एसटी अधिनियम के सभी प्रावधान और प्रतिबंध, जिसमें धारा 14-ए(2) भी शामिल है, लागू होंगे। इसलिए, आवेदकों को अपील दायर करनी चाहिए, न कि धारा 439 सीआरपीसी के तहत जमानत याचिका।

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3. अन्य अधिनियमों से भिन्नता: न्यायालय ने एससी/एसटी अधिनियम को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988, और मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 जैसे अन्य विशेष कानूनों से अलग बताया, जो विशेष अदालतों को आईपीसी अपराधों की सुनवाई का अधिकार स्पष्ट रूप से प्रदान करते हैं। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि एससी/एसटी अधिनियम में ऐसे विशिष्ट प्रावधानों की अनुपस्थिति में, सामान्य कानून के सिद्धांत लागू होने चाहिए।

4. निर्णय से उद्धरण: “एक बार विशेष अदालत को अधिनियम के तहत अपराधों की संज्ञान लेने और संयुक्त रूप से सुनवाई करने का अधिकार मिल जाता है, तो एससी/एसटी अधिनियम की सभी कठोरताएं लागू होंगी,” न्यायमूर्ति भाटिया ने कहा, यह स्पष्ट करते हुए कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत याचिका इस संदर्भ में स्वीकार्य नहीं थी।

मामले का विवरण:

मामला संख्या: फौजदारी विशेष जमानत याचिका संख्या 8192/2024 और 8751/2024  

पीठ: न्यायमूर्ति पंकज भाटिया  

आवेदकों के वकील: प्रशांत शुक्ला, महेंद्र सिंह चौधरी, अनुज दयाल, रेशु शर्मा  

प्रतिवादी पक्ष के वकील: जी.ए. (सरकारी अधिवक्ता), अभिनव श्रीवास्तव, विवेक गुप्ता  

पक्षकार: चंद्रराज उर्फ चंद्रा, ईशा, शांति बनाम उत्तर प्रदेश राज्य  

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