बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि एक बार लड़की का पीछा करने की घटना को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354-D के तहत ‘स्टॉकिंग’ का अपराध नहीं माना जा सकता। अदालत ने जोर देकर कहा कि इस अपराध को साबित करने के लिए बार-बार या लगातार पीछा करना जरूरी है।
यह निर्णय उन दो व्यक्तियों द्वारा दायर अपीलों पर आया, जिन्होंने IPC और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत विभिन्न अपराधों में अपनी सजा को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उनकी अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कुछ आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन अन्य अपराधों के लिए सजा बरकरार रखी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला महाराष्ट्र के अकोला जिले की 14 वर्षीय लड़की के उत्पीड़न से जुड़ा है। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे कई महीनों तक परेशान किया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, एक आरोपी ने अगस्त 2020 में पीड़िता के घर में जबरन प्रवेश किया, उसके साथ छेड़छाड़ की और मामले की जानकारी देने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।
घटना के वक्त पीड़िता की छोटी बहन भी घर में मौजूद थी, जिसने इन घटनाओं की पुष्टि की।
निचली अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करना), 354-D (स्टॉकिंग), 452 (गृह-अतिक्रमण) और 506 (आपराधिक धमकी) के साथ-साथ पॉक्सो एक्ट की धाराओं 7 और 11 के तहत दोषी ठहराते हुए तीन से सात साल तक के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। आरोपियों ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
कानूनी मुद्दे
हाई कोर्ट ने मामले में निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों पर विचार किया:
- स्टॉकिंग कानून की व्याख्या: IPC की धारा 354-D के तहत अपराध साबित करने के लिए बार-बार या लगातार पीछा करने, देखने या संपर्क करने के साक्ष्य आवश्यक हैं।
- एफआईआर दर्ज करने में देरी: घटना के नौ दिन बाद शिकायत दर्ज की गई, जिससे शिकायत की प्रामाणिकता पर सवाल उठे।
- साक्ष्यों की विश्वसनीयता: अदालत ने यह मूल्यांकन किया कि पीड़िता की गवाही और सहायक साक्ष्य सजा को बरकरार रखने के लिए पर्याप्त थे या नहीं।
- आरोपियों की भूमिकाओं का विश्लेषण: अदालत ने आरोपियों की अलग-अलग भूमिकाओं का परीक्षण किया।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति जी.ए. सनाप ने अपने निर्णय में कहा कि IPC की धारा 354-D के तहत स्टॉकिंग का अपराध साबित करने के लिए बार-बार या लगातार पीछा करना आवश्यक है। केवल एक बार पीड़िता का नदी तक पीछा करना इस अपराध की परिभाषा को पूरा नहीं करता।
अदालत ने कहा, “अभियोजन को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने बार-बार या लगातार पीड़िता का पीछा किया। एक बार पीछा करना इस अपराध के लिए पर्याप्त नहीं है।”
एफआईआर दर्ज करने में देरी पर अदालत ने माना कि आरोपी द्वारा धमकी दिए जाने के कारण पीड़िता और उसके परिवार ने पुलिस से संपर्क करने में संकोच किया। न्यायमूर्ति सनाप ने कहा, “एफआईआर दर्ज करने में देरी संदेह पैदा करती है, लेकिन यदि साक्ष्य विश्वसनीय और भरोसेमंद हों, तो यह देरी घातक नहीं होती।”
अदालत का निर्णय
- पहला आरोपी: अदालत ने उसके खिलाफ लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया, क्योंकि घटनाओं में उसकी सीधी भागीदारी का कोई प्रमाण नहीं था।
- दूसरा आरोपी:
- धारा 354-A IPC (यौन उत्पीड़न) और पॉक्सो एक्ट की धारा 7 (यौन शोषण) के तहत सजा बरकरार रखी गई।
- लेकिन, धारा 354-D IPC (स्टॉकिंग), 452 IPC (गृह-अतिक्रमण) और 506 IPC (आपराधिक धमकी) के तहत सजा को रद्द कर दिया गया। गृह-अतिक्रमण के आरोप को धारा 451 IPC (हल्का गृह-अतिक्रमण) में बदल दिया गया।
- सजा में संशोधन: दूसरे आरोपी को धारा 354-A IPC और पॉक्सो एक्ट के तहत पहले से बिताई गई सजा (दो साल छह महीने) तक सीमित कर दिया गया। साथ ही, जुर्माने की राशि भी घटा दी गई।
निष्कर्ष
इस निर्णय ने स्टॉकिंग के कानून के तहत अपराध की परिभाषा को स्पष्ट किया और इस बात पर जोर दिया कि एक बार की घटना को स्टॉकिंग नहीं माना जा सकता। अदालत ने साक्ष्यों के विश्लेषण और आरोपी की भूमिका के आधार पर संतुलित फैसला सुनाया।