महाराष्ट्र में आगामी निकाय चुनावों की पृष्ठभूमि में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ‘धनुष-बाण’ चुनाव चिन्ह को लेकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।
इस याचिका का उल्लेख न्यायमूर्ति एम.एम. सुन्दरश और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष किया गया, जिसने इसे 14 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति दी। ठाकरे गुट ने दलील दी कि राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना कभी भी जारी हो सकती है, ऐसे में मतदाताओं के सूचित विकल्प के अधिकार की रक्षा के लिए अंतरिम व्यवस्था की आवश्यकता है।
ठाकरे गुट की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि यह मामला चुनावी निष्पक्षता और जनधारणा से जुड़े गंभीर सवाल उठाता है और इस विवाद को चुनावों की अधिसूचना से पहले सुलझाना आवश्यक है। उन्होंने आग्रह किया कि सुप्रीम कोर्ट को एनसीपी के ‘घड़ी’ चिन्ह विवाद में अपनाए गए रुख की तरह, यहां भी तात्कालिक समाधान देना चाहिए। उस मामले में कोर्ट ने नवंबर 2023 में अजित पवार गुट को यह निर्देश दिया था कि वे प्रतीक पर चल रही कानूनी लड़ाई की जानकारी सार्वजनिक रूप से दें।

ठाकरे गुट ने यह भी बताया कि 7 मई को जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इस मुद्दे को उठाया गया था, परंतु तब याचिका को विचारार्थ नहीं लिया गया था। हालांकि उस समय अदालत ने यह कहा था कि कोर्ट के आंशिक कार्यदिवस के दौरान पुनः याचिका का उल्लेख किया जा सकता है।
वहीं, एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को याद दिलाया कि 7 मई को इसी तरह का अनुरोध खारिज किया जा चुका है और विशेष छूट न दिए जाने का आग्रह किया।
गौरतलब है कि शिवसेना के ‘धनुष-बाण’ प्रतीक को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने 2023 में इसे शिंदे गुट को आवंटित कर दिया था, यह कहते हुए कि उनके पास विधायी बहुमत है। ठाकरे गुट ने इस निर्णय को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले का उल्लंघन करार दिया है।
इस विवाद को और अधिक तात्कालिकता तब मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को पांच वर्षों से लंबित स्थानीय निकाय चुनाव जल्द कराने का निर्देश दिया।
अब 14 जुलाई की सुनवाई इस विवाद में निर्णायक साबित हो सकती है, क्योंकि दोनों गुट अपने-अपने चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, जबकि कानूनी अनिश्चितता बनी हुई है।