हरिद्वार स्थित प्राचीन मां चंडी देवी मंदिर के सेवायत महंत भवानी नंदन गिरी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की है, जिसमें मंदिर की देखरेख के लिए बदरी-केदार मंदिर समिति को रिसीवर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।
एडवोकेट अश्विनी दुबे के माध्यम से दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) में महंत गिरी ने हाई कोर्ट के आदेश को मनमाना, अवैध और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताते हुए कहा है कि यह आदेश बिना कोई नोटिस जारी किए और सेवायत को सुने बिना पारित किया गया।
यह आदेश एक जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किया गया था, जिसे रीना बिष्ट ने दायर किया था। बिष्ट ने खुद को मंदिर के मुख्य पुजारी रोहित गिरी की लिव-इन पार्टनर बताया था। गिरी की पत्नी गीतांजलि ने 21 मई को गिरी, रीना बिष्ट और सात अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बिष्ट ने उनके बेटे को वाहन से कुचलने की कोशिश की थी।

उसी दिन पंजाब पुलिस ने रोहित गिरी को एक अलग छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तार किया और वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की थी कि मंदिर के ट्रस्टी “विषाक्त वातावरण” बना रहे हैं और मंदिर में “पूर्ण अव्यवस्था” है। कोर्ट ने संभावित चंदा गबन की आशंका भी जताई और बदरी-केदार मंदिर समिति को प्रबंधन सौंपने का आदेश दिया।
हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि 2012 से हाई कोर्ट के निर्देश पर जिलाधिकारी और एसएसपी, हरिद्वार की एक समिति मंदिर की निगरानी कर रही है और अब तक किसी भी तरह की गड़बड़ी या शिकायत सामने नहीं आई है।
“हाई कोर्ट ने सुनवाई से बाहर जाकर आदेश पारित कर दिया, जबकि सेवायत और मुख्य ट्रस्टी को न तो सुना गया और न ही कोई नोटिस जारी किया गया,” याचिका में कहा गया है।
महंत गिरी ने यह भी कहा कि मां चंडी देवी मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने की थी और तब से उनके पूर्वज सेवायत के रूप में इसकी देखरेख करते आ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की संभावना है।