गैर-जमानती वारंट जारी होने के बाद आरोपी सीआरपीसी की धारा 88 का लाभ नहीं ले सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि गैर-जमानती वारंट जारी होने के बाद कोई आरोपी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 88 का लाभ नहीं ले सकता। न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया द्वारा सुनाया गया यह फैसला नवनीत भदौरिया द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने लखनऊ के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) कोर्ट संख्या 25 द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

अदालत ने आवेदन को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि धारा 88 सीआरपीसी का लाभ उस आरोपी को नहीं मिलता जो अदालत के समक्ष पेश होने में विफल रहता है और न्यायिक प्रक्रिया से बचने का प्रयास करता है।

मामले की पृष्ठभूमि

मामले की शुरुआत दीपक शर्मा (विपक्षी संख्या 2) द्वारा आनंद कुमार सिंह उर्फ ​​बाबा त्रिकालदर्शी, राजीव लोचन पालीवाल, नवनीत भदौरिया (आवेदक), विजय पाल प्रजापति और एक अन्य अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ पुलिस स्टेशन विभूति खंड, लखनऊ में दर्ज कराई गई एफआईआर से हुई। केस क्राइम नंबर 363/2021 के रूप में दर्ज की गई एफआईआर में धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक विश्वासघात और अन्य अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 323, 504, 506, 406, 420, 467, 468 और 471 के तहत गंभीर आरोप शामिल थे।

READ ALSO  तरुण तेजपाल के वकील हुए कोरोना पॉज़िटिव, मामले पर सुनवाई टली

01.06.2022 को आरोप पत्र दाखिल करने के बाद, न्यायालय ने आरोपों का संज्ञान लिया और आरोपियों को समन जारी किया। हालांकि, नवनीत भदौरिया पेश नहीं हुए, जिसके कारण 10.10.2022 को जमानती वारंट जारी किया गया और उसके बाद उनकी लगातार अनुपस्थिति के कारण 15.10.2022 को गैर-जमानती वारंट जारी किया गया।

मुख्य कानूनी मुद्दे और तर्क

1. धारा 88 सीआरपीसी के तहत आवेदन:

आवेदक ने धारा 88 सीआरपीसी के तहत राहत मांगी, जो अदालत को आरोपी के उपस्थित होने पर उपस्थिति के लिए बांड लेने की अनुमति देती है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए आवेदन को खारिज कर दिया कि धारा 88 का लाभ केवल तभी लिया जा सकता है जब आरोपी स्वेच्छा से अदालत के समक्ष उपस्थित हो। चूंकि उनकी गैर-उपस्थिति के कारण पहले ही गैर-जमानती वारंट जारी किया जा चुका था, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस मामले में धारा 88 लागू नहीं होती।

2. धारा 70 सीआरपीसी के तहत आवेदन:

आवेदक ने धारा 70 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन भी दायर किया, जिसमें उसके खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट को वापस लेने की मांग की गई। ट्रायल कोर्ट ने आवेदक द्वारा पिछले न्यायालय के आदेशों का पालन न करने तथा बार-बार छूट आवेदनों और असहयोग के माध्यम से मुकदमे में देरी करने के उसके प्रयासों का हवाला देते हुए इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

READ ALSO  यूपी में पिता की हत्या के लिए दो पुरुषों और उनकी पत्नियों को उम्रकैद की सजा

कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय

न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया ने आवेदन को खारिज करते हुए आवेदक के आचरण के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा:

“धारा 88 सीआरपीसी का लाभ ऐसे अभियुक्त को नहीं दिया जा सकता जो व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहा हो तथा जिसके विरुद्ध गैर-जमानती वारंट पहले ही जारी किया जा चुका हो।”

कोर्ट ने आगे कहा कि आवेदक के आचरण से न्यायिक कार्यवाही से बचने तथा मुकदमे में देरी करने का स्पष्ट इरादा प्रदर्शित होता है। आवेदक ने न्यायालय के पिछले आदेशों का अनुपालन नहीं किया था, जिसमें उसकी अग्रिम जमानत रद्द होने के पश्चात आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी शामिल था।

हाई कोर्ट ने पुष्टि की कि धारा 88 सीआरपीसी लागू होने के लिए अभियुक्त को स्वेच्छा से न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना चाहिए। न्यायालय ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि एक बार गैर-जमानती वारंट जारी होने के बाद, अभियुक्त धारा 88 सीआरपीसी का लाभ नहीं ले सकता, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करेगा और अभियुक्त को न्यायालय के आदेशों का पालन न करने के परिणामों से बचने की अनुमति देगा।

READ ALSO  कुष्ठ कॉलोनियों से मरीजों को बेदखल न किया जाए, उन्हें मुख्यधारा में वापस लाने के प्रयास किए जाएं: हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि कार्यवाही को रद्द करने या गैर-जमानती वारंट को वापस लेने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन में कोई योग्यता नहीं थी। न्यायालय ने 21.08.2024 के ट्रायल कोर्ट के आदेश में कोई त्रुटि या अनुचितता नहीं पाई, जिसने धारा 70 और 88 सीआरपीसी के तहत आवेदनों को खारिज कर दिया था।

मामले का विवरण:

– मामला संख्या: आवेदन यू/एस 482 संख्या 7515/2024

– आवेदक: नवनीत भदौरिया

– विपक्षी: प्रमुख सचिव गृह, लखनऊ के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य; दीपक शर्मा

– बेंच: जस्टिस सौरभ लवानिया

– आवेदक के वकील: अनुज टंडन, पूर्णेंदु चक्रवर्ती

– विपक्षी पक्ष के वकील: श्री एस.पी. तिवारी (ए.जी.ए.), दिग्विजय नाथ दुबे

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles