ज़मीन मालिकों, विशेषकर कमजोर और वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 80 के तहत दिया गया नोटिस मात्र औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण वैधानिक अवसर है, जिससे सरकार विवादों की समीक्षा कर सकती है और उचित मामलों को मुकदमेबाज़ी में उलझने से पहले सुलझा सकती है।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने यह फैसला ‘येरिकला सुनकलम्मा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य व अन्य’ मामले में सुनाया। यह अपील SLP (C) संख्या 3324/2015 से उत्पन्न होकर सिविल अपील संख्या 4311/2025 के रूप में दर्ज की गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता येरिकला सुनकलम्मा और उनके परिवार की एक अन्य सदस्य, कर्नूल ज़िले के दिन्नेदेवरपाडु गांव की येरिकला अनुसूचित जनजाति समुदाय से हैं। उन्होंने 3.34 एकड़ कृषि भूमि (सर्वे नंबर 451/1) पर वैध स्वामित्व और कब्जे का दावा किया, जिसका आधार एक 1970 की अदालत द्वारा आदेशित नीलामी और पंजीकृत बिक्री विलेख था।

उनका कहना था कि 1995 तक वे भूमि पर शांतिपूर्ण ढंग से कब्जे में थीं, जब राजस्व विभाग ने उन्हें बिना किसी नोटिस के ज़बरन बेदखल कर दिया। विभाग का दावा था कि भूमि पर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET) का निर्माण होना है।
अपीलकर्ताओं ने मुकदमा दायर करने से पहले 4 जनवरी 1996 को सीपीसी की धारा 80 के तहत जिला कलेक्टर को नोटिस भेजा, जिसमें उन्होंने ज़मीन की पुनः बहाली या मुआवज़े की मांग की थी। सरकार ने इस नोटिस पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की, जिससे उन्हें मूल वाद संख्या 115/1996 दाखिल करनी पड़ी।
1999 में ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन 2002 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे पलट दिया, यह मानते हुए कि भूमि “असाइन की गई ज़मीन” थी और सरकार उसे कानूनन वापस ले सकती थी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और फैसला
सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने गहराई से इस बात की समीक्षा की कि सरकार किस प्रक्रिया से ज़मीन का अधिग्रहण कर सकती है, और यह भी देखा कि क्या धारा 80 सीपीसी के तहत दिया गया नोटिस केवल औपचारिक था या उसका विधिक महत्व था।
कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“सीपीसी की धारा 80 के तहत दिया गया वैधानिक नोटिस केवल एक औपचारिकता नहीं है। यह सरकार को यह अवसर देता है कि वह वादी के दावे पर विचार कर उसे न्याय दिलाए और अनावश्यक मुकदमेबाज़ी को रोका जा सके।”
कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ताओं ने स्पष्ट, तर्कसंगत और समय पर नोटिस दिया था, फिर भी राज्य सरकार ने न तो कोई जांच की और न ही उनके दावे पर विचार किया।
“यदि अधिकारियों ने उस नोटिस पर उचित कार्रवाई की होती, तो एक वंचित परिवार को वर्षों की अदालती लड़ाई और मानसिक पीड़ा से बचाया जा सकता था,” कोर्ट ने टिप्पणी की।
मुख्य कानूनी निष्कर्ष
- स्वामित्व प्रमाणित: अपीलकर्ताओं ने 1970 की नीलामी और पंजीकृत बिक्री विलेख के ज़रिए अपना स्वामित्व प्रमाणित किया। उनके पास पट्टादार पासबुक और भूमि कर भुगतान की रसीदें भी थीं।
- ‘असाइन की गई ज़मीन’ का कोई प्रमाण नहीं: राज्य सरकार यह सिद्ध नहीं कर सकी कि ज़मीन 1954 के बाद असाइन की गई थी और उस पर ग़ैर-अंतरित करने की शर्तें थीं।
- ग़लत प्रक्रिया से अधिग्रहण: मंडल राजस्व अधिकारी ने किसी नोटिस या जांच के बिना ज़मीन अधिग्रहण की, जो कानूनन गलत पाया गया।
- ट्रायल कोर्ट का निर्णय सही: ट्रायल कोर्ट ने राज्य की कार्रवाई को मनमानी, गैरकानूनी और प्रक्रिया के उल्लंघन के रूप में सही ठहराया।
- हाईकोर्ट की त्रुटि: हाईकोर्ट ने सबूतों का बोझ गलत तरीके से अपीलकर्ताओं पर डाल दिया और ‘असाइनमेंट’ कानूनों की गलत व्याख्या की।
- धारा 80 सीपीसी की महत्ता: खंडपीठ ने दोहराया कि सरकारी नोटिस केवल दिखावा नहीं, बल्कि संविधानिक और विधिक दायित्व है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणी
“सरकार को आदर्श वादी के रूप में कार्य करना चाहिए। उसे विशेषकर गरीब और जनजातीय वादियों के मामलों में उदासीन नहीं रहना चाहिए, जिन्होंने कानूनी प्रक्रिया का पालन किया है।”
“धारा 80 का उद्देश्य न्याय का दरवाज़ा खोलना है, न कि उसे नौकरशाही की लालफीताशाही में बंद कर देना।” — न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला
कोर्ट के आदेश
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का 2014 का फैसला रद्द कर दिया।
- 05 अगस्त 1999 को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को बहाल किया गया, जिसमें अपीलकर्ताओं को वैध ज़मींदार माना गया था।
- राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह अपीलकर्ताओं को ज़मीन का वास्तविक कब्जा लौटाए।
मामले का विवरण
मामले का नाम: येरिकला सुनकलम्मा व अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य व अन्य
मामला संख्या: सिविल अपील संख्या 4311/2025 (SLP (C) 3324/2015 से उत्पन्न)
फैसले की तारीख: 24 मार्च 2025
पीठ: न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन
अपीलकर्ताओं के वकील: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एस. निरंजन रेड्डी
प्रतिवादियों के वकील: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आनंद पद्मनाभन