धारा 8 आईबीसी | कॉर्पोरेट डिबेटर के पंजीकृत कार्यालय पर उसके प्रमुख प्रबंधकीय कर्मचारियों को भेजी गई डिमांड नोटिस वैध मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि ऑपरेशनल क्रेडिटर द्वारा दी गई डिमांड नोटिस कॉर्पोरेट डिबेटर के पंजीकृत कार्यालय पर उसके प्रमुख प्रबंधकीय कर्मचारियों (Key Managerial Personnel – KMP) को उनके पदनाम के अनुसार भेजी गई है, तो उसे इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (IBC) की धारा 8 के तहत वैध सेवा माना जाएगा।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने वीसा कोक लिमिटेड बनाम मेस्को कलिंग स्टील लिमिटेड मामले में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) द्वारा याचिका खारिज करने को गलत ठहराते हुए उसे रद्द कर दिया।

पृष्ठभूमि

वीसा कोक लिमिटेड (ऑपरेशनल क्रेडिटर) ने मेस्को कलिंग स्टील लिमिटेड (कॉर्पोरेट डिबेटर) के विरुद्ध ₹4.19 करोड़ की बकाया राशि को लेकर धारा 9 के अंतर्गत कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) शुरू करने की याचिका दायर की थी। यह राशि लो ऐश मेटलर्जिकल कोक (LAM Coke) की आपूर्ति से संबंधित थी।

31 मार्च 2021 को, याचिकाकर्ता ने IBC की धारा 8 के अंतर्गत फॉर्म 3 में डिमांड नोटिस जारी कर उसे कॉर्पोरेट डिबेटर के निदेशक, मुख्य वित्तीय अधिकारी, और वाणिज्यिक प्रबंधक को उनके पदों के अनुसार, कंपनी के पंजीकृत कार्यालय पर भेजा था।

NCLT ने 24 जनवरी 2023 को इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि डिमांड नोटिस सीधे कॉर्पोरेट डिबेटर को संबोधित नहीं की गई थी। NCLAT ने 3 अक्टूबर 2024 को इसे बरकरार रखा।

विधिक प्रश्न

क्या धारा 8 के अंतर्गत कॉर्पोरेट डिबेटर के KMP को पंजीकृत कार्यालय पर भेजी गई नोटिस को वैध सेवा माना जा सकता है, जिससे धारा 9 के अंतर्गत CIRP की प्रक्रिया शुरू की जा सके?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि IBC की धारा 8 और Adjudicating Authority Rules, 2016 के नियम 5(2)(b) के अनुसार, KMP को पंजीकृत कार्यालय पर भेजी गई नोटिस, यदि कंपनी को संबोधित हो और सही फॉर्मेट (फॉर्म 3) में हो, तो उसे वैध सेवा माना जाएगा।

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पीठ ने कहा:

“अपीलकर्ता द्वारा कॉर्पोरेट डिबेटर के पंजीकृत कार्यालय पर KMP को उनके औपचारिक पदों के अनुसार भेजी गई नोटिस को, धारा 8 के तहत वैध सेवा माना जाएगा।”

न्यायालय ने राजनीश अग्रवाल बनाम अमित जे. भल्ला (2001) 1 SCC 631 का संदर्भ देते हुए कहा कि नोटिस के उद्देश्य को देखते हुए उसे तकनीकी आधारों पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिका लंबित रहने के दौरान उत्तरदाता (कॉर्पोरेट डिबेटर) ने ऋण चुकाने हेतु समझौते का प्रयास किया था, जिससे यह संकेत मिलता है कि उसे नोटिस की जानकारी थी।

डिफॉल्ट और अनुबंध का नवोवेशन

उत्तरदाता ने यह तर्क दिया कि मूल अनुबंध (11.10.2019) को बाद में संशोधित किया गया था और ईमेल्स के माध्यम से उसे बदल दिया गया, जिससे अनुबंध का नवोवेशन हुआ। इस पर न्यायालय ने कहा कि यह तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न है, जिसका निर्णय सबूतों और विस्तृत सुनवाई के बाद NCLT को करना होगा।

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निर्णय

न्यायालय ने कहा:

“यह अपील स्वीकार की जाती है और impugned आदेशों को रद्द किया जाता है। मामला NCLT को वापस भेजा जाता है ताकि वह धारा 9 की याचिका पर नए सिरे से, गुण-दोष के आधार पर, उचित सुनवाई के बाद निर्णय ले।”

NCLT को निर्देश दिया गया है कि वह अपने पूर्व आदेशों से प्रभावित हुए बिना नया निर्णय ले।

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