बांझपन को लेकर ताने मारने के आरोप मात्र से नहीं बनता 498A का मामला: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, यह कहते हुए कि महिला को गर्भधारण न करने के कारण ताने मारने जैसे सामान्य और अस्पष्ट आरोपों के आधार पर क्रूरता या दहेज उत्पीड़न का मामला नहीं बनता।

यह निर्णय न्यायमूर्ति हरिनाथ एन. ने क्रिमिनल रिवीजनल पेटीशन संख्या 4896 ऑफ 2023 में दिया, जिसे अभियुक्त संख्या 2 से 5 ने सी.सी. संख्या 623 ऑफ 2023 के विरुद्ध दाखिल किया था, जो वर्तमान में श्रीकाकुलम के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी-सह-प्रिंसिपल जूनियर सिविल जज के समक्ष लंबित है।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता—मुख्य अभियुक्त (पति) के माता-पिता और बहनें—ने उनके विरुद्ध कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने शिकायतकर्ता (तृतीय प्रतिवादी) के वैवाहिक जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं किया और विशेष रूप से यह बताया गया कि याचिकाकर्ता संख्या 3 और 4 (बहनें) विवाहित हैं और अलग-अलग शहरों में निवास करती हैं, अतः उनके खिलाफ आरोप लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत वकील ने तर्क दिया कि शिकायत में लगाए गए आरोप केवल सामान्य और अस्पष्ट हैं और इनमें क्रूरता या दहेज उत्पीड़न के किसी विशिष्ट कृत्य का उल्लेख नहीं है। शिकायत और गवाहों के बयानों में किसी विशेष तिथि या घटना का उल्लेख नहीं था जिससे यह स्थापित हो सके कि याचिकाकर्ताओं ने उत्पीड़न किया।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता 3 और 4 को केवल परेशान करने और मुख्य अभियुक्त (पति) पर दबाव बनाने के उद्देश्य से मामले में घसीटा गया।

राज्य पक्ष और तृतीय प्रतिवादी ने याचिका का विरोध किया।

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायालय ने देखा कि शिकायत में याचिकाकर्ता 3 और 4 के खिलाफ कोई ठोस और विशिष्ट आरोप नहीं लगाए गए हैं। उनके खिलाफ केवल यह आरोप था कि उन्होंने तृतीय प्रतिवादी को गर्भधारण न करने पर ताने मारे और पति को उत्पीड़न के लिए उकसाया।

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न्यायमूर्ति हरिनाथ एन. ने टिप्पणी की:

“यद्यपि याचिकाकर्ता 3 और 4 के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को इस मामले की दृष्टि से सही और सत्य मान भी लिया जाए, तब भी उनके खिलाफ धारा 498A आईपीसी या दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के अंतर्गत कोई मामला नहीं बनता।”

अदालत ने आगे कहा:

“इस प्रकार के अस्पष्ट आरोप, जिनमें यह नहीं बताया गया है कि किस तारीख को और कब उक्त ताने मारे गए, कानून की दृष्टि में टिक नहीं सकते।”

यह भी रेखांकित किया गया कि याचिकाकर्ता 3 और 4 matrimonial home से दूर रह रहे थे और उनके प्रत्यक्ष हस्तक्षेप या निरंतर उपस्थिति को दर्शाने वाला कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है जिससे क्रूरता के आरोप को समर्थन मिल सके।

न्यायाधीश ने कहा:

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“यह मामला भी उन्हीं मामलों में से एक है, जहां मुख्य अभियुक्त से बदला लेने के उद्देश्य से उससे असंबंधित रिश्तेदारों को आरोपी बनाया गया है।”

निर्णय

अंततः अदालत ने यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता 3 और 4 के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, उनके विरुद्ध सी.सी. संख्या 623 ऑफ 2022 को रद्द कर दिया।

“आपराधिक याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। तदनुसार, याचिकाकर्ताओं 3 और 4 के विरुद्ध सी.सी. संख्या 623 ऑफ 2022 को रद्द किया जाता है।”

संदर्भ

Basuru Mani Bhushana Rao & Others vs State of Andhra Pradesh & Others,
CRLP No. 4896 of 2023

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