धारा 498ए | वैवाहिक विवादों में बिना ठोस आरोपों के पति के रिश्तेदारों को फंसाने की प्रवृत्ति पर शुरुआत में ही अंकुश लगाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता को दोहराते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पति के तीन रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बिना विशिष्ट विवरण के किए गए अस्पष्ट और सामान्य आरोप, विवाह संबंधी विवादों में परिवार के सदस्यों के खिलाफ अभियोजन का औचित्य नहीं ठहराते। यह निर्णय 23 अप्रैल 2025 को जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ द्वारा Muppidi Lakshmi Narayana Reddy & Ors. बनाम State of Andhra Pradesh & Anr., (क्रिमिनल अपील, विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 2570/2018 से उत्पन्न) में दिया गया।

मामले का सारांश

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (निषेध एवं आबकारी प्रकरण) गुंटूर के समक्ष लंबित सी.सी. नंबर 359/2016 की कार्यवाही को रद्द करने से इंकार कर दिया गया था। यह कार्यवाही उस प्राथमिकी पर आधारित थी, जिसे वादी (पति चल्ला पूर्णानंद रेड्डी की पत्नी) ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों, जिनमें अपीलकर्ता (भाभी A4, उनके पति A5 और ससुर A6) शामिल थे, के खिलाफ उत्पीड़न और दहेज मांगने के आरोपों के तहत दर्ज कराया था।

अपीलकर्ताओं ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी, यह दावा करते हुए कि वे वादी के साथ नहीं रहते थे और उन्हें गलत तरीके से झूठे आरोपों में फंसाया गया है।

पृष्ठभूमि और आरोप

वादी और आरोपी संख्या 1 के बीच विवाह 24 मई 2014 को संपन्न हुआ था। शिकायत के अनुसार, कुछ महीनों में ही संबंधों में खटास आ गई और वादी बार-बार matrimonial home छोड़कर अपने मायके लौटने लगी। इस दौरान पति ने पुनर्मिलन के लिए याचिका दायर की, जबकि पत्नी ने प्रतिवाद किया। अप्रैल 2015 में दोनों के बीच समझौता हुआ, लेकिन बाद में वादी ने अमेरिका जाकर पति और उसके परिवार को बिना सूचना छोड़ दिया।

जून 2016 में पति ने तलाक की अर्जी दाखिल की, जिसके बाद जुलाई 2016 में वादी ने धारा 498ए IPC और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत एक नई प्राथमिकी (एफआईआर नंबर 79/2016) दर्ज कराई, जिसमें छह लोगों को नामित किया गया, जिनमें अपीलकर्ता भी शामिल थे।

शिकायत में आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता, जो हैदराबाद में रहते थे, गुंटूर आकर पति और उसके माता-पिता को दहेज मांगने के लिए उकसाते थे। शिकायत में ₹5,00,000 की मांग और इस प्रकार के तानों का उल्लेख किया गया कि यदि पति ने किसी और से विवाह किया होता तो उसे ₹10 करोड़ दहेज मिल जाता।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

दोनों पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद, पीठ ने पाया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे तथा किसी ठोस घटना या विशिष्ट विवरण का उल्लेख नहीं था। जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने निर्णय सुनाते हुए कहा:

“ऐसा कोई विशिष्ट दिनांक नहीं है जब वर्तमान अपीलकर्ताओं ने गुंटूर का दौरा किया हो और आरोपी संख्या 1 से 3 के साथ मिलकर वादी से दहेज की मांग की हो। आरोप केवल सामान्य और समेकित (omnibus) हैं।”

महत्वपूर्ण रूप से, पीठ ने इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई कि विवाह विवादों में पति के विस्तारित रिश्तेदारों को बिना किसी ठोस आधार के फंसाया जा रहा है।

कोर्ट ने अपने पूर्व निर्णयों जैसे गीता मेहरोत्रा व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य [(2012) 10 SCC 741] पर भी भरोसा किया, जिसमें पति के रिश्तेदारों को अंधाधुंध फंसाने की प्रवृत्ति की आलोचना की गई थी। साथ ही हालिया फैसले डारा लक्ष्मी नारायण व अन्य बनाम तेलंगाना राज्य व अन्य [(2024) INSC 953] का भी उल्लेख किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था:

“केवल पारिवारिक सदस्यों के नामों का उल्लेख करना, बिना उनके सक्रिय सहभागिता के ठोस आरोपों के, शुरुआत में ही समाप्त किया जाना चाहिए।”

कोर्ट ने आगे चेताया:

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“ऐसे सामान्य और sweeping आरोप, जो ठोस साक्ष्य या विशेष आरोपों से समर्थित नहीं हैं, आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते।”

कार्यवाही को रद्द करना

यह ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता हैदराबाद में रह रहे थे और वादी के matrimonial home गुंटूर में नहीं थे, पीठ ने कहा कि उनके खिलाफ अभियोजन चलाने का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता। कोर्ट ने माना कि आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

निर्णय में कहा गया:

“मामले के समस्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और गीता मेहरोत्रा तथा डारा लक्ष्मी नारायण मामलों में इस न्यायालय के पूर्व निर्णयों पर भरोसा करते हुए, अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द किया जाना उचित है। अतः अपील स्वीकार की जाती है और अपीलकर्ताओं के खिलाफ क्रिमिनल केस नंबर 359/2016 को रद्द किया जाता है।”

मामले का विवरण: Muppidi Lakshmi Narayana Reddy & Ors. बनाम State of Andhra Pradesh & Anr., क्रिमिनल अपील संख्या _______ / 2025 (विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 2570/2018 से उत्पन्न)

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