सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक हत्या के मामले में मृतका के ससुराल वालों को तलब करने से इनकार कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयानों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के तहत ‘मृत्युकालिक कथन’ (Dying Declaration) के रूप में माना जा सकता है, भले ही वह मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में न दर्ज किया गया हो या मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र न हो।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेकापम कोटेश्वर सिंह की पीठ ने नीरज कुमार @ नीरज यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2025 INSC 1386) मामले में अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत, जिनमें मृतका के भाई और नाबालिग बेटी की गवाही शामिल है, प्रथम दृष्टया ससुराल वालों की संलिप्तता की ओर इशारा करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य सवाल यह था कि क्या ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा अभियोजन पक्ष की धारा 319 CrPC के तहत दायर अर्जी को खारिज करना सही था? इस अर्जी में मृतका की सास और देवर-जेठ (पति के भाई और बहनोई) को अतिरिक्त आरोपी के रूप में तलब करने की मांग की गई थी, जिनका नाम मृतका के बयानों में तो था लेकिन पुलिस की चार्जशीट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि किसी मृतक व्यक्ति द्वारा अपनी मौत के कारणों के बारे में पुलिस अधिकारी को दिया गया बयान (धारा 161 CrPC के तहत) साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के तहत प्रासंगिक और स्वीकार्य है। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 अप्रैल 2024 के फैसले और ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और निजी प्रतिवादियों (प्रतिवादी संख्या 2 से 4) को सत्र परीक्षण संख्या 1151/2021 में मुकदमा चलाने के लिए तलब किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 25 मार्च 2021 को थाना सिकंदराबाद में दर्ज एफआईआर संख्या 187/2021 से जुड़ा है। अपीलकर्ता नीरज कुमार ने आरोप लगाया था कि उनकी बहन निशी को उसके पति राहुल ने ससुराल में गोली मार दी थी। उन्हें यह जानकारी अपनी नौ साल की भांजी, सृष्टि से मिली थी, जिसने बताया था, “पापा ने मम्मी को घर पर गोली मार दी है।”
इलाज के दौरान पुलिस ने मृतका के बयान धारा 161 CrPC के तहत दो बार दर्ज किए:
- 25 मार्च 2021: उसने अपने पति को गोली मारने वाला बताया।
- 18 अप्रैल 2021: उसने आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी मां रजो @ राजवती (प्रतिवादी संख्या 2), भाई साटन @ विनीत (प्रतिवादी संख्या 3) और बहनोई गब्बर (प्रतिवादी संख्या 4) के उकसाने पर गोली मारी। उसने बताया कि बेटियां पैदा होने और कन्या भ्रूण हत्या से इनकार करने पर उसे प्रताड़ित किया जाता था।
15 मई 2021 को पीड़िता की मौत हो गई। जांच के बाद पुलिस ने केवल पति राहुल के खिलाफ धारा 302 और 316 IPC के तहत चार्जशीट दाखिल की, जबकि अन्य रिश्तेदारों को छोड़ दिया।
ट्रायल के दौरान, अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता (PW-1) और नाबालिग बेटी (PW-2) की गवाही कराई। इनके बयानों और मृतका के कथनों के आधार पर धारा 319 CrPC के तहत अन्य आरोपियों को तलब करने की अर्जी दी गई, जिसे ट्रायल कोर्ट और बाद में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। हाईकोर्ट का तर्क था कि बयान और मौत के बीच लंबा समय था और गवाहों ने सीधे गोली चलते नहीं देखा था।
पक्षों की दलीलें
अभियोजन पक्ष का तर्क: अभियोजन ने दलील दी कि ट्रायल के दौरान सामने आए सबूत स्पष्ट रूप से प्रतिवादियों की भूमिका को उजागर करते हैं। उन्होंने मुख्य रूप से घटना के वक्त मौजूद नाबालिग बेटी (PW-2) की गवाही और 18 अप्रैल 2021 को दर्ज मृतका के विस्तृत बयान का हवाला दिया, जिसमें उसने उकसाने का स्पष्ट आरोप लगाया था।
बचाव पक्ष का तर्क: प्रतिवादियों का कहना था कि:
- PW-2 ने जिरह में स्वीकार किया कि वह गोली चलने की आवाज सुनकर मौके पर पहुंची, यानी वह चश्मदीद गवाह नहीं थी।
- नाबालिग गवाह अपीलकर्ता के परिवार के साथ रह रही थी, इसलिए उसे सिखाया-पढ़ाया (tutored) गया हो सकता है।
- मृतका के बयानों में विरोधाभास था; पहले बयान में रिश्तेदारों का नाम नहीं था।
- बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज नहीं हुए थे और न ही मृतका की मानसिक स्थिति का कोई मेडिकल प्रमाण पत्र था।
- पहले बयान और मौत के बीच लगभग दो महीने का अंतर था, जिससे इसे ‘डाइंग डिक्लेरेशन’ मानना कमजोर आधार है।
कोर्ट का विश्लेषण
1. धारा 319 CrPC की शक्तियों का दायरा संविधान पीठ के फैसले हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) और एस. मोहम्मद इस्पाही बनाम योगेंद्र चांडक (2017) का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि धारा 319 के तहत शक्ति “असाधारण” है और इसका इस्तेमाल तब किया जाना चाहिए जब “मजबूत और ठोस सबूत” मौजूद हों। कोर्ट ने कहा कि यह संतुष्टि आरोप तय करने (framing of charge) के स्तर से अधिक होनी चाहिए, लेकिन दोषसिद्धि (conviction) के लिए आवश्यक स्तर से कम हो सकती है।
2. नाबालिग गवाह (PW-2) की गवाही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने समन जारी करने के चरण पर ही PW-2 की गवाही को खारिज करने के लिए उसकी जिरह (cross-examination) का सहारा लिया। पीठ ने इसे “मिनी-ट्रायल” आयोजित करना बताया, जो अनुचित है। कोर्ट ने नोट किया कि PW-2 के बयान और धारा 161 के बयान को साथ पढ़ने पर प्रतिवादियों की भूमिका स्पष्ट होती है, जैसे मुख्य आरोपी को पिस्तौल देना और उसे “खत्म करने” के लिए उकसाना।
3. मृत्युकालिक कथन (Dying Declaration) की स्वीकार्यता पुलिस को दिए गए बयानों की वैधता पर, कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया कि मजिस्ट्रेट या डॉक्टर के प्रमाण पत्र के बिना ये स्वीकार्य नहीं हैं। धर्मेंद्र कुमार बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2024) मामले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा:
“किसी मृतक व्यक्ति द्वारा पुलिस अधिकारी को दिया गया बयान, जो धारा 161 CrPC के तहत दर्ज किया गया हो, साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के तहत प्रासंगिक और स्वीकार्य होगा… भले ही धारा 162 CrPC में स्पष्ट रोक हो। ऐसा बयान, बयानकर्ता की मृत्यु के बाद, मृत्युकालिक कथन का रूप ले लेता है।”
मानसिक फिटनेस प्रमाण पत्र के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर की उपस्थिति या प्रमाण पत्र केवल “सावधानी का विषय” (matter of prudence) है, अनिवार्यता नहीं।
बयान और मृत्यु के बीच के समय के अंतर पर कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“कानून यह अपेक्षा नहीं करता कि बयान देते समय व्यक्ति मौत के साये में हो या उसे आसन्न मृत्यु की आशंका हो… महत्वपूर्ण यह है कि बयान मौत के कारण या उन परिस्थितियों से संबंधित हो जिनके कारण मौत हुई।”
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि PW-1 और PW-2 की गवाही, मृतका के बयानों के साथ मिलकर, प्रतिवादियों को तलब करने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करती है। कोर्ट ने बयानों में विरोधाभास और गवाह को सिखाए जाने जैसी आपत्तियों को “समय से पहले” (premature) बताया, जिनका फैसला ट्रायल के दौरान होना चाहिए।
“अतः अपील स्वीकार की जाती है… पक्षों को निर्देश दिया जाता है कि वे 08 जनवरी 2026 को ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित हों। हम उन्हें पूर्ण सहयोग करने और अनावश्यक स्थगन न लेने का निर्देश देते हैं। ट्रायल में तेजी लाई जाए।”

