सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम प्रक्रिया संबंधी फैसले में कहा है कि किसी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ, जिस पर पहले दाखिल विशेष अनुमति याचिका (SLP) पहले ही खारिज हो चुकी हो, दोबारा SLP दाखिल करना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और यह पुनर्वाद (Re-litigation) के समान है। न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजरिया की पीठ ने कहा कि ऐसा कदम मुकदमों में अंतिमता के सिद्धांत को कमजोर करता है।
मामला क्या था
याचिकाकर्ता वसंतलता कोम विमलानंद मिरजंकर ने कर्नाटक हाईकोर्ट, धारवाड़ के 30 जनवरी 2014 के फैसले और 18 फरवरी 2025 को समीक्षा याचिका खारिज करने के आदेश को चुनौती दी थी।
पहले, याचिकाकर्ता ने 2014 के हाईकोर्ट आदेश को SLP(C) 12831/2014 के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे 1 जुलाई 2014 को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था —
“याचिकाकर्ता के वकील को सुना। अनुच्छेद 136 के तहत हमारे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कोई आधार नहीं है। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।”

इसके बाद, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में समीक्षा याचिका (RP No. 100119/2014) दाखिल की, जो 18 फरवरी 2025 को खारिज हो गई। अब दाखिल मौजूदा SLP में दोनों — मूल आदेश और समीक्षा आदेश — को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता किरण सूरी ने कहा कि हाईकोर्ट ने समीक्षा याचिका सिर्फ इस आधार पर खारिज कर दी कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही हस्तक्षेप से इंकार कर चुका है, जबकि समीक्षा याचिका स्वीकार्य थी। उन्होंने Kunhayammed बनाम State of Kerala (2000) 6 SCC 359 और Khoday Distilleries Ltd. बनाम Sri Mahadeshwara Sahakara Sakkare Karkhane Ltd. (2019) 4 SCC 376 का हवाला दिया।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि दूसरी SLP की स्वीकार्यता का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट ने S. Narahari बनाम S.R. Kumar (2023) 7 SCC 740 मामले में बड़ी पीठ को भेजा है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
पीठ ने पाया कि पहली SLP मेरिट पर खारिज की गई थी और उसी आदेश के खिलाफ मौजूदा SLP सुनना उचित नहीं होगा। अदालत ने कहा —
“मौजूदा SLP को सुनना 1 जुलाई 2014 के आदेश के खिलाफ अपील सुनने जैसा होगा, जो इस न्यायालय की समकक्ष पीठ ने पारित किया था।”
अदालत ने S. Narahari मामले को अलग ठहराते हुए कहा कि उसमें SLP “वापस ली गई थी, न कि मेरिट पर खारिज हुई थी।”
Kunhayammed और Khoday Distilleries फैसलों पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया —
“ये फैसले सिर्फ यह कहते हैं कि गैर-विस्तृत आदेश से SLP खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की जा सकती है, न कि यह कि याचिकाकर्ता दूसरी SLP दाखिल करने का हकदार है।”
पीठ ने यह भी कहा कि मुख्य आदेश को फिर से चुनौती देने का यह प्रयास CPC, 1908 के आदेश 47 नियम 7 के तहत समीक्षा याचिका खारिज होने के आदेश के खिलाफ अपील पर रोक को दरकिनार करने का तरीका है।
अदालत ने T.K. David बनाम Kuruppampady Service Cooperative Bank Ltd. (2020) 9 SCC 92 का हवाला देते हुए दोहराया कि जब हाईकोर्ट का मुख्य आदेश अंतिम हो जाता है, तो समीक्षा खारिज करने के आदेश के खिलाफ SLP में कोई राहत नहीं दी जा सकती।
अदालत ने S. Narahari मामले के साथ इस याचिका को टैग करने से इंकार किया और कहा कि लंबित रेफरेंस के बावजूद, अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी कानून लागू रहेगा।
फैसला
अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा —
“मौजूदा SLP दाखिल करना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, क्योंकि यह पुनर्वाद के समान है। इसे सुनना मुकदमों में अंतिमता के सिद्धांत, जो विधि के शासन का आधार है, को चुनौती देने जैसा होगा।”
इस आधार पर SLP खारिज कर दी गई और लंबित सभी आवेदनों का निस्तारण कर दिया गया।