इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए यह देखना आवश्यक नहीं है कि विवाह वैध है या नहीं। यह फैसला उस मामले में आया जिसमें फैमिली कोर्ट ने एक महिला को केवल इस आधार पर अंतरिम भरण-पोषण देने से मना कर दिया था कि उसने अपनी पूर्ववर्ती शादी की जानकारी छिपाई थी।
यह निर्णय न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा एवं न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने 30 मई 2025 को फर्स्ट अपील डिफेक्टिव नंबर 530 ऑफ 2025 में पारित किया।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता ने फैमिली कोर्ट के 3 मई 2025 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें वैवाहिक विवाद लंबित होने के दौरान धारा 24 के अंतर्गत दाखिल अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमे के खर्चे की मांग को खारिज कर दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने कहा था कि अपीलकर्ता ने यह छुपाया कि उसकी पहली शादी 15 अप्रैल 2024 को समाप्त हुई और उसने स्वयं को आयकर विभाग की कर्मचारी बताया था, जबकि ऐसा कोई प्रमाण नहीं था।

पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि अपीलकर्ता और उत्तरदाता के बीच विवाह फरवरी 2021 में हिंदू रीति-रिवाज से संपन्न हुआ था, और विवाह के बाद वह उत्तरदाता के साथ कानपुर नगर में रह रही थी। उन्होंने यह भी बताया कि अपीलकर्ता के पास कोई स्वतंत्र आय का स्रोत नहीं है और उत्तरदाता की मासिक आय ₹65,000 है, जो पुलिस विभाग की नौकरी और निजी व्यवसाय से होती है। ऐसे में ₹20,000 प्रतिमाह की राशि भरण-पोषण हेतु न्यायसंगत है।
उत्तरदाता की ओर से पेश अधिवक्ता ने सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर (AIR 2025 SC 951) मामले का हवाला देते हुए कहा कि धारा 24 के तहत भरण-पोषण देना न्यायालय के विवेकाधिकार का विषय है, और आवेदक के आचरण को इसमें महत्त्वपूर्ण माना जाना चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
कोर्ट ने कहा कि धारा 24 के तहत विचार का मुख्य मापदंड यह है कि क्या आवेदक के पास अपनी आजीविका चलाने और मुकदमे की लागत उठाने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय है। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“महत्त्वपूर्ण यह है कि क्या वाद के लंबित रहने तक भरण-पोषण व व्यय की आवश्यकता उस पक्ष को है, जो इसे मांग रहा है।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“यह हो सकता है कि अपीलकर्ता ने अपने वैवाहिक स्थिति को लेकर गलतबयानी की हो। यह भी संभव है कि उत्तरदाता को विवाह को शून्य घोषित कराने में सफलता मिले। लेकिन फैमिली कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई प्रमाण नहीं था जिससे यह साबित हो सके कि अपीलकर्ता के पास जीविका चलाने का कोई साधन है।”
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी कहा:
“उत्तरदाता की ओर से यह कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि अपीलकर्ता कहीं कार्यरत है, विशेष रूप से आयकर विभाग में।”
पीठ ने यह स्वीकार किया कि फैमिली कोर्ट के रिकॉर्ड में यह तथ्य दर्ज है कि विवाह के बाद अपीलकर्ता उत्तरदाता के साथ कानपुर नगर में रहने लगी थी, और वर्तमान में झांसी में रह रही है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया:
“धारा 24 उस जीवनसाथी को अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमे के खर्च की अनुमति देती है जो आय के अभाव में वाद के दौरान सहायता चाहता है।”
अंतिम निर्णय
फैमिली कोर्ट के आदेश को पलटते हुए हाईकोर्ट ने कहा:
“हम संतुष्ट हैं कि अंतरिम भरण-पोषण और वाद खर्च के लिए आदेश दिया जाना चाहिए था।”
कोर्ट ने निर्देश दिया कि उत्तरदाता अपीलकर्ता को ₹15,000 प्रतिमाह की दर से भरण-पोषण व मुकदमे के खर्च के रूप में भुगतान करेगा। यह भुगतान 15 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगा, जो कि आवेदन की तिथि है। समस्त बकाया राशि 14 जून 2025 तक अदा की जानी है और इसके बाद प्रत्येक माह की 7 तारीख तक भुगतान किया जाएगा।
उत्तरदाता की ओर से मुकदमे के शीघ्र निस्तारण के अनुरोध पर कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को सुनवाई शीघ्रता से पूरी करने का निर्देश दिया और यह भी स्पष्ट किया:
“अपीलकर्ता को स्थगन मांगते नहीं देखा जाना चाहिए।”
अंत में, कोर्ट ने रजिस्ट्री द्वारा निर्णय का अंग्रेजी अनुवाद त्वरित रूप से प्रस्तुत करने के लिए प्रशंसा दर्ज की और अपील को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए निस्तारित कर दिया।
मामला संख्या: फर्स्ट अपील डिफेक्टिव नंबर 530 ऑफ 2025