सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की ‘ज़ुडपी जंगल’ ज़मीनों को 1996 के अपने ऐतिहासिक निर्णय के अनुरूप ‘वन भूमि’ घोषित किया है। हालांकि, न्यायालय ने 12 दिसंबर 1996 की कट-ऑफ तिथि से पहले इन ज़मीनों पर बने सार्वजनिक और आवासीय ढांचों को संरक्षण प्रदान किया है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘ज़ुडपी’ शब्द का मराठी में अर्थ झाड़ीदार भूमि होता है और भले ही ये ज़मीनें गुणवत्ता में कमजोर हों, फिर भी ये कानूनी दृष्टि से ‘वन’ की परिभाषा में आती हैं।
पुराने ढांचों को संरक्षण

न्यायालय ने माना कि नागपुर जैसे शहरों में उच्च न्यायालय भवन, सड़कें, स्कूल, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र और सिंचाई परियोजनाएं इन ज़मीनों पर बनाई गई थीं। ऐसे मामलों में अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल 1996 से पहले बने ढांचों को ही संरक्षण प्राप्त होगा और यह निर्णय किसी भी प्रकार से भविष्य में उदाहरण (precedent) के तौर पर नहीं लिया जाएगा।
पीठ ने टिप्पणी की, “हमें यह भी तय करना होगा कि क्या नागरिकों को केवल कुछ नौकरशाही की गड़बड़ियों की वजह से इन सभी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए… इन सवालों का जवाब नकारात्मक ही होना चाहिए।”
वनीकरण के लिए उपयोग पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ज़ुडपी जंगल की भूमि का उपयोग मुआवज़ा वनीकरण (compensatory afforestation) के लिए नहीं किया जा सकता, जब तक कि राज्य का मुख्य सचिव यह प्रमाणपत्र न दे कि वनीकरण के लिए अन्य गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में वनीकरण दोगुने क्षेत्रफल पर किया जाएगा।
भूमि उपयोग में बदलाव के लिए अनिवार्य स्वीकृति
अब से यदि ज़ुडपी जंगल भूमि को किसी गैर-वन उपयोग में परिवर्तित करना है तो उसके लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत पूर्व अनुमति आवश्यक होगी। 1996 के बाद आवंटित ज़मीनों के मामलों में राज्य को उचित कारण और संबंधित अधिकारियों के नाम केंद्र को सौंपने होंगे। केंद्र सरकार तभी कोई प्रस्ताव मानेगी जब दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी हो।
अवैध कब्जों पर रोक और प्रवर्तन के आदेश
अदालत ने निर्देश दिया कि महाराष्ट्र सरकार प्रत्येक प्रभावित ज़िले में एक टास्क फोर्स गठित करे, जिसमें उपमंडल मजिस्ट्रेट (SDM), डिप्टी एसपी, सहायक वन संरक्षक और तालुका भूमि निरीक्षक शामिल हों। यह टास्क फोर्स दो वर्षों के भीतर ज़मीन से अवैध कब्जे हटाएगी।
राज्य के राजस्व विभाग को निर्देश दिया गया है कि शेष 7,76,767 हेक्टेयर ज़ुडपी जंगल भूमि को वन विभाग को सौंपा जाए।
राज्य-केंद्र समन्वय के निर्देश
अदालत ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया कि वे तीन महीने के भीतर केंद्रीय सशक्त समिति (Central Empowered Committee) की निगरानी में बैठक करें और तय करें कि ज़ुडपी जंगल भूमि को किस परिस्थिति में गैर-वन उपयोग के लिए परिवर्तित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
यह फैसला पर्यावरण संरक्षण के प्रति सुप्रीम कोर्ट की सतत प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें शहरी विकास की वास्तविकताओं को भी महत्व दिया गया है। यह निर्णय एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए मौजूदा सार्वजनिक ढांचों को सुरक्षा देता है और भविष्य के भूमि उपयोग के लिए सख्त मानदंड स्थापित करता है।