भारतीय सेना की शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) महिला अधिकारियों ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने में पुरुष अधिकारियों की तुलना में भेदभाव किया गया है, जबकि उन्होंने गलवान, बालाकोट और हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर जैसे महत्वपूर्ण अभियानों में हिस्सा लिया है।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भूयान और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ को बताया गया कि केंद्र सरकार ने 2020 और 2021 में शीर्ष अदालत के आदेशों का बार-बार उल्लंघन किया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता वी. मोहना ने कहा कि केंद्र सरकार स्थायी कमीशन में महिलाओं की कम संख्या का कारण सीटों की कमी बता रही है, जबकि 2021 के बाद कई मौकों पर 250 अधिकारियों की सीमा पार की गई।

उन्होंने कहा, “ये अधिकारी बेहद सक्षम हैं और अपने पुरुष साथियों की तरह कठिन क्षेत्रों में डटे रहकर दायित्व निभा चुकी हैं। लेकिन उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में पक्षपात किया गया।”
अन्य महिला अधिकारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता माखीजा, अभिनव मुखर्जी और रेखा पल्लि ने भी दलीलें दीं। बहस पूरी होने के बाद अदालत ने अगली सुनवाई 24 सितम्बर तय की, जब केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी जवाब देंगी।
बुधवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने “मानदंड नियुक्ति” (Criteria Appointment) को लेकर पुरुष और महिला अधिकारियों के बीच दोहरी नीति पर हैरानी जताई थी। यह नियुक्ति कठिन और शत्रुतापूर्ण क्षेत्रों में नेतृत्वकारी जिम्मेदारी से जुड़ी होती है और स्थायी कमीशन के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने 13 महिला अधिकारियों की ओर से दलील दी कि 2020 के फैसले से पहले उनकी ACRs “फ्रीज” कर दी गई थीं, जिससे उन्हें अनुचित ग्रेडिंग दी गई। उन्होंने कई महिला अधिकारियों की विशिष्ट सेवाओं का उल्लेख किया, जैसे:
- ले. कर्नल वनीता पाधी – कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात, और पंजाब में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कंपनी कमांडर रहीं।
- ले. कर्नल चांदनी मिश्रा – 88 देशों में MEAT (Manoeuvrable Expendable Aerial Target) उड़ाने वाली पहली महिला पायलट।
- ले. कर्नल गीता शर्मा – लद्दाख में उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तैनात, ऑपरेशन गलवान के दौरान कम्युनिकेशन की कमान संभाली।
- ले. कर्नल स्वाति रावत – ऑपरेशन सिंदूर में वर्कशॉप की कमान और जम्मू-कश्मीर के बसौली क्षेत्र में आतंकवाद-रोधी अभियानों में तैनाती।
गुरुस्वामी ने कहा कि पुरुष अधिकारियों की ACR में ऐसी नियुक्तियों को “क्राइटेरिया अपॉइंटमेंट” के रूप में दर्ज किया गया, जबकि महिला अधिकारियों की रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं किया गया, जिससे उन्हें स्थायी कमीशन के मूल्यांकन में नुकसान हुआ।
अधिकारी बबीता पुनिया (2020) और निशिता (2021) मामलों में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा जता रही हैं। इन फैसलों में अदालत ने कहा था कि महिलाओं को भी पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन और कमांड भूमिकाओं में अवसर मिलने चाहिए।
2020 के ऐतिहासिक निर्णय में अदालत ने कहा था कि महिलाओं को केवल स्टाफ भूमिकाओं तक सीमित रखना कानूनन अस्थिर और अस्वीकार्य है। अदालत ने स्पष्ट किया था कि स्थायी कमीशन का उद्देश्य कैरियर उन्नति है और महिलाओं को इससे वंचित करना असंवैधानिक है।
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 24 सितम्बर को करेगा। इसके बाद नौसेना और वायु सेना की महिला अधिकारियों की याचिकाएं भी सुनवाई के लिए ली जाएंगी।