सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तेलंगाना सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट किया कि सतत विकास के नाम पर जंगलों को बुलडोजर से उजाड़ना किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। यह टिप्पणी कोर्ट ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास कांचा गच्चीबौली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई के मामले की स्वत: संज्ञान याचिका की सुनवाई के दौरान दी।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची भी शामिल थे, ने कहा —
“मैं खुद सतत विकास का समर्थक हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि रातों-रात 30 बुलडोजर लगाकर पूरा जंगल साफ कर दिया जाए।”
सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी (न्यायालय मित्र) वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने बताया कि कई निजी पक्ष राज्य सरकार के हलफनामे पर प्रतिक्रिया देना चाहते हैं। इस पर पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को तय की।

इससे पहले, 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की कटाई को “पूर्व नियोजित” करार देते हुए सरकार से स्पष्ट किया था कि या तो जंगल को बहाल करें, या फिर अधिकारियों को जेल जाने के लिए तैयार रहें। मुख्य न्यायाधीश ने सख्त लहजे में कहा था —
“राज्य सरकार को तय करना होगा कि उसे जंगल बहाल करना है या अपने अधिकारियों को जेल भेजना है।”
कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब अदालतें बंद थीं और लंबा सप्ताहांत था, तभी पेड़ काटने की कार्रवाई क्यों की गई?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 3 अप्रैल को स्वत: संज्ञान लेते हुए जंगल की मौजूदा स्थिति को बनाए रखने का आदेश दिया था और कहा था कि राज्य या किसी भी प्राधिकरण द्वारा केवल मौजूदा पेड़ों की सुरक्षा की जा सकती है, लेकिन और कोई कटाई नहीं हो।
16 अप्रैल को भी अदालत ने सरकार को लताड़ते हुए कहा था कि 100 एकड़ क्षेत्र में हुई कटाई की पुनर्बहाली के लिए विस्तृत योजना पेश करें, अन्यथा मुख्य सचिव के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।