सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तराखंड सरकार, राज्य लोक सेवा आयोग और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस एक याचिका पर जारी किया गया है जिसमें नेत्रहीनता और गतिशीलता संबंधी विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को राज्य न्यायिक सेवा परीक्षा से बाहर रखने को चुनौती दी गई है।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने यह याचिका श्राव्या सिंधुरी द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता स्वयं एक दृष्टिबाधित उम्मीदवार हैं। उनका आरोप है कि 16 मई को जारी भर्ती विज्ञापन में नेत्रहीन और गतिशीलता विकलांगता से पीड़ित उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने से अवैध रूप से वंचित कर दिया गया, जबकि यह परीक्षा 31 अगस्त से शुरू होने वाली है।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इस भेदभावपूर्ण नीति की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “यह बहुत गलत है, सरकार की तरफ से यह बहुत गलत है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि पूर्व में नोटिस जारी किए जाने के बावजूद राज्य सरकार या आयोग की ओर से कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ, जिसके चलते मामले की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने पुनः नोटिस जारी किए।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह विज्ञापन संविधान प्रदत्त अधिकारों और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञापन में केवल चार उप-श्रेणियों — कुष्ठ रोग से मुक्त, एसिड अटैक पीड़ित, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और बौनेपन — को पात्रता दी गई है, जबकि अन्य श्रेणियों जैसे नेत्रहीनता और गतिशीलता विकलांगता को पूरी तरह बाहर कर दिया गया।
याचिका में अधिसूचना में लगाए गए निवास प्रमाणपत्र की अनिवार्यता को भी चुनौती दी गई है, जिससे राज्य के बाहर के विकलांग उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर दिया गया है। यह विकलांग व्यक्तियों के लिए समावेशी रोजगार सुनिश्चित करने वाले RPwD अधिनियम की धारा 34 के विपरीत है, जो सार्वजनिक नौकरियों में कम से कम 4% आरक्षण अनिवार्य करता है, जिसमें से 1% नेत्रहीनता/कम दृष्टि और 1% गतिशीलता विकलांगता के लिए सुरक्षित है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च को एक ऐतिहासिक फैसले में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों में समान प्रकार के भेदभावपूर्ण प्रावधानों को असंवैधानिक करार देते हुए यह स्पष्ट किया था कि नेत्रहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में अवसरों से वंचित नहीं किया जा सकता।
इस निर्णय को आधार बनाते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी भर्ती अधिसूचना को इस हद तक रद्द किया जाए, जिससे यह पात्रता सीमित करती है और विकलांग वर्ग के एक बड़े हिस्से के अधिकारों का उल्लंघन करती है।
