सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) और उसके दो अधिकारियों की वह अपील खारिज कर दी जिसमें उन्होंने बाजार नियामक SEBI द्वारा लगाए गए ₹30 लाख के दंड और उसे बरकरार रखने वाले सेबी अपीलीय अधिकरण (SAT) के फैसले को चुनौती दी थी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने SAT के आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए माना कि RIL और उसके अनुपालन अधिकारियों ने जियो-फेसबुक निवेश सौदे से संबंधित अप्रकाशित मूल्य-संवेदी सूचना (UPSI) को समय पर सार्वजनिक नहीं किया।
जून 2022 में SEBI ने RIL और दो पदाधिकारियों—सवित्री पारेख और के. सेथुरमन—पर कुल ₹30 लाख का दंड इसलिए लगाया था क्योंकि उन्होंने मार्च 2020 में फेसबुक के जियो प्लेटफॉर्म्स में निवेश से जुड़ी मीडिया रिपोर्टों पर समय रहते स्टॉक एक्सचेंजों को स्पष्टीकरण नहीं दिया।
SEBI की जांच में पाया गया कि
24-25 मार्च 2020 को सौदे को लेकर खबरें सामने आई थीं,
लेकिन RIL ने स्टॉक एक्सचेंजों को 22 अप्रैल 2020 को जानकारी दी—यानी 28 दिन बाद।
SEBI की निर्णायक अधिकारी बर्नाली मुखर्जी ने अपने आदेश में कहा था:
“जियो-फेसबुक डील से जुड़ी खबरें 24 और 25 मार्च 2020 को आई थीं और स्टॉक एक्सचेंजों को जानकारी 22 अप्रैल 2020 को दी गई। यह 28 दिन की देरी है, जिसके लिए दंड उचित है।”
नियामक ने कहा कि RIL को UPSI को सुरक्षित रखने का दायित्व था, और जब जानकारी चुनिंदा तौर पर सार्वजनिक होने लगी तब कंपनी पर यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती थी कि वह स्वयं आगे बढ़कर पुष्टि या खंडन जारी करे। पारेख और सेथुरमन को भी समय पर स्पष्टीकरण न देने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया।
RIL ने SEBI के आदेश को SAT में चुनौती दी थी, पर 2 मई 2025 को ट्रिब्यूनल ने नियामक के आदेश को सही माना। SAT ने भी कहा कि कंपनी ने LODR नियमों के तहत UPSI की त्वरित और निष्पक्ष प्रकटीकरण से जुड़े दायित्वों का पालन नहीं किया।
RIL की अपील को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SAT के निष्कर्षों में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और न ही कोई ऐसा विधिक प्रश्न उठता है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए।
इस तरह SEBI का दंड और उसके निष्कर्ष अब सर्वोच्च न्यायिक पुष्टि प्राप्त कर चुके हैं।

