सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दिल्ली हाईकोर्ट के उस नियम को सही ठहराया है, जो केवल दिल्ली हायर जुडिशियल सर्विस (DHJS) से सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों को ही दिल्ली हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता (सीनियर एडवोकेट) पदनाम के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी विजय प्रताप सिंह द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया। सिंह ने हाईकोर्ट ऑफ दिल्ली (डेजिग्नेशन ऑफ सीनियर एडवोकेट) रूल्स, 2024 के नियम 9B को चुनौती दी थी, जो अन्य राज्यों के सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों को दिल्ली में वरिष्ठ अधिवक्ता बनने से रोकता है।
याचिकाकर्ता ने नियम को भेदभावपूर्ण बताया
स्वयं पक्षकार के रूप में उपस्थित हुए विजय प्रताप सिंह ने तर्क दिया कि नियम 9B संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है। उनका कहना था कि यह नियम सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों के बीच असंवैधानिक उप-वर्गीकरण करता है — दिल्ली के अधिकारियों को वरीयता देता है, जबकि अन्य राज्यों के समान रूप से योग्य अधिकारियों को बाहर कर देता है।

हालांकि, पीठ ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश गवई ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम के लिए आवेदन कर सकते हैं, जहां इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है। इसके बाद कोर्ट ने बिना किसी विस्तृत चर्चा के याचिका खारिज कर दी।
दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही नियम का पक्ष ले चुका है
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने नियम 9B की संवैधानिकता को बरकरार रखा था। न्यायालय ने कहा था कि वरिष्ठ अधिवक्ता का नामांकन केवल सेवा रिकॉर्ड के आधार पर नहीं होता, बल्कि वकील के आचरण, गरिमा और व्यवहार जैसे पहलुओं का मूल्यांकन भी जरूरी होता है — और यह मूल्यांकन उसी न्यायालय के न्यायाधीश बेहतर कर सकते हैं, जिसमें संबंधित अधिकारी ने कार्य किया हो।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा केवल मानद नहीं होता, बल्कि वह पेशेवर प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है, जो कई मायनों में वर्तमान न्यायाधीश के स्तर के समकक्ष होता है। इसलिए, केवल दिल्ली के सेवानिवृत्त अधिकारियों को ही आवेदन की अनुमति देना एक उचित और तर्कसंगत व्यवस्था है।
न्यायालय ने माना कि यह वर्गीकरण intelligible differentia पर आधारित है और इसका उद्देश्य नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनाए रखना है। इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता।
महत्वपूर्ण बिंदु
- वरिष्ठ अधिवक्ता नामांकन में संस्थागत परिचय (institutional familiarity) एक महत्वपूर्ण कारक है।
- हाईकोर्ट प्रशासनिक और क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार आवेदन की सीमा तय करने के लिए नियम बना सकते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप से इनकार न्यायिक स्व-प्रशासन (judicial self-governance) के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
- अन्य राज्यों के सेवानिवृत्त अधिकारी सुप्रीम कोर्ट जैसे अधिक समावेशी मंचों पर आवेदन कर सकते हैं।