सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस सेना के कांस्टेबल की सजा को बरकरार रखा है, जिसने मेस के खाने से असंतुष्ट होकर अपने साथियों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी थी। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और एस वी एन भट्टी की पीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 2014 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी कांस्टेबल को आईपीसी की धारा 307 (हत्या की कोशिश) और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषमुक्त कर दिया गया था।
यह घटना वर्ष 2010 की है, जब आरोपी कांस्टेबल ने ए.के.-47 से अपने साथियों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल के अपने आदेश में कहा, “तथ्य और परिस्थितियां दर्शाती हैं कि आरोपी ने क्रोध में आकर अंधाधुंध गोलीबारी की, यह जानते हुए भी कि गोलियों से उसके किसी भी साथी को गंभीर शारीरिक क्षति हो सकती है, जो संभवतः मृत्यु का कारण बन सकती थी।”
पीड़ितों को दोनों जांघों में चार गंभीर चोटें आई थीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी करते समय कई महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ट्रायल कोर्ट द्वारा 20 मार्च 2013 को दिए गए मूल निर्णय को पुनर्स्थापित कर दिया गया।

हालांकि, पीठ ने सजा में कुछ संशोधन किया है। अदालत ने माना कि आईपीसी की धारा 307 के अंतर्गत अनुशासित बल के सदस्यों के लिए कोई न्यूनतम सजा अनिवार्य नहीं है। आरोपी द्वारा पहले ही लगभग 1 साल 5 महीने जेल में बिताए जाने को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने सात साल की कठोर कैद की सजा को घटाकर केवल अब तक की सजा तक सीमित कर दिया।