सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि वह पहले उन पुनर्विचार याचिकाओं की स्वीकार्यता (maintainability) पर सुनवाई करेगा जो 2022 के उस ऐतिहासिक फैसले को चुनौती देती हैं जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED) को धनशोधन (money laundering) मामलों में गिरफ्तारी, संपत्ति जब्त करने और तलाशी लेने जैसी विस्तृत शक्तियां प्रदान की गई थीं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा कि यह पहले तय किया जाएगा कि ये याचिकाएं विधिक रूप से पुनर्विचार के योग्य हैं या नहीं।
“वे पहले प्रारंभिक मुद्दे—पुनर्विचार की स्वीकार्यता—उठाने के लिए सही हैं। हम सभी जानते हैं कि पुनर्विचार की अपनी सीमाएं होती हैं… कभी-कभी हमारा मत भिन्न हो सकता है, लेकिन हम मौलिक रूप से उसे बदल नहीं सकते,” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा।

पीठ ने मामले को 6 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया है।
ईडी ने उठाए तीन प्रारंभिक आपत्तियां
सरकार की ओर से पेश प्रवर्तन निदेशालय ने तीन प्रारंभिक मुद्दे उठाए हैं जो पुनर्विचार याचिकाओं की वैधता पर केंद्रित हैं। वहीं पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं ने 13 प्रश्न न्यायालय के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत किए हैं।
इससे पहले 7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को यह निर्देश दिया था कि वे स्पष्ट करें कि किन कानूनी मुद्दों पर सुनवाई अपेक्षित है।
केंद्र ने सीमित मुद्दों पर ही पुनर्विचार की अनुमति देने की बात कही
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2022 में जिन दो विशेष मुद्दों पर ही नोटिस जारी किया था, पुनर्विचार उन्हीं दो बिंदुओं तक सीमित रहना चाहिए:
- क्या आरोपी को ईसीआईआर (ECIR) की प्रति अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए?
- पीएमएलए की धारा 24 के तहत उलटे प्रमाण भार (reverse burden of proof) की वैधता।
2022 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पीएमएलए के तहत ईडी को गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की व्यापक शक्तियां वैध ठहराई थीं। कोर्ट ने कहा था कि धनशोधन कोई सामान्य अपराध नहीं है बल्कि यह वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के लिए एक “खतरा” है।
फैसले में यह कहा गया था:
- ईडी अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं माने जाते, इसलिए उन पर सीआरपीसी की प्रक्रियाएं सख्ती से लागू नहीं होतीं।
- ईसीआईआर को एफआईआर के बराबर नहीं माना जा सकता और इसकी प्रति आरोपी को देना अनिवार्य नहीं है।
- धारा 45, जो अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाती है तथा जमानत के लिए दोहरी शर्तें रखती है, उसे भी वैध ठहराया गया।
यह फैसला 200 से अधिक याचिकाओं पर आया था, जिसमें विपक्ष ने आरोप लगाया था कि सरकार इस कानून का दुरुपयोग कर राजनीतिक विरोधियों को निशाना बना रही है।
आगे की दिशा
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पुनर्विचार याचिकाएं विधिसंगत पाई जाती हैं, तभी आगे उनके विषयवस्तु पर सुनवाई की जाएगी।
“यदि अदालत यह मानती है कि पुनर्विचार याचिकाएं स्वीकार्य हैं, तो ही आगे उठाए गए कानूनी प्रश्नों पर विचार किया जाएगा,” पीठ ने कहा।