दिव्यांगजनों पर की गई कथित अपमानजनक और असंवेदनशील टिप्पणियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कॉमेडियन समय रैना, विपुल गोयल सहित पांच कॉमेडियनों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। यह आदेश क्योर एसएमए फाउंडेशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने पारित किया।
कोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह इन पांचों व्यक्तियों को नोटिस भेजकर अगली सुनवाई की तारीख पर उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि वे उपस्थित नहीं होते हैं तो उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
समय रैना और विपुल गोयल के अतिरिक्त जिन अन्य लोगों को तलब किया गया है, वे हैं — बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर (उर्फ सोनाली आदित्य देसाई) और निशांत जगदीश तंवर।
फाउंडेशन की याचिका में आरोप लगाया गया है कि एक शो के दौरान समय रैना ने एक दो महीने के एसएमए (स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी) से पीड़ित बच्चे के इलाज की महंगी लागत को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की। एक अन्य अवसर पर उन्होंने कथित तौर पर एक नेत्रहीन और तिरछी दृष्टि वाले व्यक्ति का मजाक उड़ाया। याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ क्रिकेटरों ने भी ऐसे वीडियो बनाए हैं जो दिव्यांगजनों का उपहास उड़ाते हैं।
इस विवाद की पृष्ठभूमि उस आवेदन से जुड़ी है जो फाउंडेशन ने यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया से संबंधित मामलों में दायर किया था। वह याचिका ऑनलाइन माध्यमों पर अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री को लेकर थी। उस सुनवाई में कोर्ट ने यह संकेत दिया था कि वह ऐसे विषयों पर व्यापक विचार करना चाहता है और इस संबंध में केंद्र सरकार का पक्ष भी जानना चाहता है।
याचिका में यह तर्क दिया गया है कि हास्य का उपयोग सामाजिक धारणा को चुनौती देने के लिए सकारात्मक रूप से किया जा सकता है, लेकिन “डिसेबलिंग ह्यूमर” — अर्थात ऐसा हास्य जो दिव्यांगजनों का अपमान करता है — उसके लिए स्पष्ट नियामक दिशानिर्देश आवश्यक हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कई कंटेंट क्रिएटर दुरुपयोग कर रहे हैं।
इससे पहले 21 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने फाउंडेशन को निर्देश दिया था कि वह एक व्यापक याचिका दाखिल करे जिसमें सभी संबंधित व्यक्तियों को पक्षकार बनाया जाए और वीडियो क्लिपिंग व ट्रांसक्रिप्ट जैसे साक्ष्य भी प्रस्तुत किए जाएं। न्यायालय ने कहा था, “यह अत्यंत गंभीर मुद्दा है। हम इस पर चिंतित हैं। कृपया घटनाओं को रिकॉर्ड पर लाएं… फिर हम देखेंगे।”
फाउंडेशन ने कोर्ट के सुझाव के अनुसार वर्तमान याचिका दायर की है और मांग की है कि ऐसे मामलों में स्पष्ट दिशा-निर्देश तय किए जाएं ताकि दिव्यांगजनों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा की जा सके।
अब यह मामला अगली सुनवाई में आगे बढ़ेगा, जिसमें कोर्ट द्वारा तलब किए गए सभी व्यक्तियों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई है।