सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गौहाटी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के.एन. चौधरी को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए उनके खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही पर रोक लगा दी है।

गौरतलब है कि यह अवमानना कार्यवाही दो वरिष्ठ वकीलों, अनिल कुमार भट्टाचार्य और पल्लवी तालुकदार, द्वारा एक व्यक्तिगत जज और हाईकोर्ट के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां करने के आरोपों के चलते शुरू की गई थी। ये टिप्पणियां हाईकोर्ट भवन को उत्तर गुवाहाटी के रंगमहल में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान की गई थीं। इस संबंध में असम के महाधिवक्ता ने शिकायत दर्ज कराई थी।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आदेश दिया कि भट्टाचार्य और तालुकदार के खिलाफ अवमानना कार्यवाही आगे बढ़ सकती है, लेकिन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के खिलाफ कार्यवाही फिलहाल स्थगित रहेगी। कोर्ट ने कहा, “नोटिस जारी करें… तथ्यों और परिस्थितियों तथा प्रस्तुत तर्कों को ध्यान में रखते हुए, एक अंतरिम उपाय के रूप में हम आदेश देते हैं कि हाईकोर्ट प्रतिवादी संख्या 1 और 3 के खिलाफ अवमानना कार्यवाही जारी रखेगा, लेकिन वर्तमान याचिकाकर्ता [बार के अध्यक्ष] के खिलाफ कार्यवाही स्थगित रहेगी।”

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने चौधरी की ओर से पेश होते हुए दलील दी कि जब कथित टिप्पणियां की गईं तब अध्यक्ष उपस्थित ही नहीं थे। उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष इस दावे के समर्थन में एक बयान और एक वीडियो क्लिप भी प्रस्तुत की।

सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने पूछा कि नए हाईकोर्ट भवन के निर्माण का विरोध क्यों किया जा रहा है। पहले तो सिब्बल ने विरोध से इनकार किया, लेकिन बाद में स्वीकार किया कि संभवतः उन्होंने इस कदम का विरोध किया था, हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मात्र विरोध करने से अवमानना नहीं मानी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे को लेकर कोई हड़ताल नहीं हुई थी।

इस बीच, बार एसोसिएशन द्वारा सीनियर एडवोकेट श्याम दिवान के माध्यम से दायर एक अलग याचिका को वापस ले लिया गया और कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने अध्यक्ष चौधरी को अंतरिम राहत प्रदान की।

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जस्टिस नाथ ने कहा, “मिस्टर सिब्बल, हमारा प्रस्ताव है कि बार एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका को हम स्वीकार नहीं करेंगे। याचिका खारिज की जाती है। जहां तक अध्यक्ष का संबंध है, नोटिस जारी किया जाएगा और हाईकोर्ट को दोनों वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।”

इस दौरान, असम के महाधिवक्ता की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अध्यक्ष को दी गई अंतरिम राहत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि अध्यक्ष बार के सदस्यों की गतिविधियों से स्वयं को अलग नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि बार के अध्यक्ष को अपने सदस्यों के आचरण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उन्हें अलग नहीं माना जाना चाहिए। इस पर जस्टिस नाथ ने टिप्पणी की कि बार एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व उसके सचिव के माध्यम से भी किया जा सकता है, न कि केवल अध्यक्ष के माध्यम से।

यह विवाद उस समय उभरा जब एडवोकेट पल्लवी तालुकदार ने एक मीडिया साक्षात्कार में कथित रूप से गौहाटी हाईकोर्ट के मौजूदा जज और कोर्ट की बिल्डिंग कमेटी व सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस सुमन श्याम के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। वहीं, एडवोकेट भट्टाचार्य ने एक साक्षात्कार में कथित रूप से दावा किया कि उनके पास “सकारात्मक साक्ष्य” हैं कि जज “सीआईडी की तरह व्यवहार कर रहे हैं।”

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हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें कहा गया था:

“गौहाटी हाईकोर्ट के वर्तमान स्थान से स्थानांतरण के विषय में सार्वजनिक क्षेत्र में गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं और कुछ बार सदस्यों द्वारा संवैधानिक पदाधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाए जा रहे हैं, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जनता का विश्वास कमजोर हो रहा है और संदेह उत्पन्न हो रहा है।”

फिलहाल, भट्टाचार्य और तालुकदार के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिकाओं पर गौहाटी हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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