सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बढ़ते अवैध निर्माणों पर चिंता जताते हुए राज्यों और हाईकोर्टों को सख़्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे निर्माण न केवल शहरी नियोजन को बिगाड़ते हैं बल्कि बुनियादी ढांचे पर बोझ डालते हैं और आमजन की सुरक्षा को भी खतरे में डालते हैं।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि अवैध निर्माण केवल निजी विवाद का विषय नहीं है, बल्कि यह व्यापक जनहित का सवाल है और इसके लिए भवन कानूनों का कड़ाई से पालन कराना होगा।
हावड़ा, पश्चिम बंगाल का मामला
हावड़ा से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्माण कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा दिए गए अवैध हिस्से को गिराने के आदेश को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के रवैये की सराहना करते हुए कहा कि उसे व्यक्तिगत मामलों से आगे बढ़कर शहरभर में फैले अवैध निर्माणों के खिलाफ पहल करनी चाहिए।

कोर्ट ने पाया कि हावड़ा ज़िला परिषद ने जांच के बाद निष्कर्ष निकाला था कि बिल्डरों ने जानबूझकर स्वीकृत नक्शे से विचलन किया और अवैध हिस्से बनाए, जिन्हें हटाया जाना ज़रूरी है।
ओडिशा को नोटिस
दूसरे मामले में अदालत ने ओडिशा सरकार को नोटिस जारी कर दिसंबर 2024 में दिए गए अपने व्यापक दिशा-निर्देशों के पालन पर जवाब मांगा।
उस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि:
- बिल्डरों को यह लिखित आश्वासन देना होगा कि फ़्लैट या दुकान का कब्ज़ा केवल वैध पूर्णता या आवासीय प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही दिया जाएगा।
- प्राधिकरणों द्वारा समय-समय पर निरीक्षण अनिवार्य होगा।
- अवैध इमारतों को बिजली, पानी और सीवरेज कनेक्शन नहीं दिए जाएंगे।
- दोषी अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई होगी।
- बैंक और वित्तीय संस्थान केवल उन्हीं संपत्तियों पर कर्ज़ देंगे जिनके पास वैध प्रमाणपत्र होगा।
- अवैध निर्माणों को व्यवसायिक या व्यापारिक लाइसेंस जारी नहीं किए जाएंगे।
कोर्ट की चेतावनी
सीनियर एडवोकेट शादन फ़रासत द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने ओडिशा को याद दिलाया कि दिसंबर 2024 के निर्देश साफ़ थे कि अवैध निर्माणों को नियमित या वैध नहीं ठहराया जा सकता।
कोर्ट ने कहा, “यदि अधिकारी ईमानदारी से इन निर्देशों का पालन करें तो इसका निवारक असर पड़ेगा और अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या में भारी कमी आएगी।”
सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माणों को “सामाजिक अभिशाप” बताते हुए कहा कि देरी, प्रशासनिक ढिलाई या नियमितीकरण के प्रयास से ऐसे उल्लंघनों को कभी भी ढाल नहीं मिल सकती। अदालत ने चेतावनी दी कि राज्य सरकारें जिस अल्पकालिक लाभ को देख रही हैं, उसकी तुलना में यह समस्या लंबे समय तक शहरी विकास और पर्यावरण पर अपूरणीय क्षति पहुंचाती है।