सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) के तहत पीड़ित के सुनवाई के अधिकार की सीमा को स्पष्ट किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हालांकि धारा 15A(5) के तहत जमानत कार्यवाही में पीड़ित को सुनवाई का उचित अवसर मिलना अनिवार्य है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि न्यायालय को पीड़ित द्वारा उठाई गई प्रत्येक आपत्ति का विस्तृत निर्णय या स्पष्ट अस्वीकरण अपने आदेश में देना होगा।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने मामले में पाया कि पीड़ित के सुनवाई के अधिकार का कोई प्रक्रियात्मक उल्लंघन नहीं हुआ है। इसके बावजूद, पीठ ने मामले के गुण-दोष (merits) के आधार पर आरोपियों को दी गई जमानत रद्द कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को “स्पष्ट रूप से विकृत” (manifestly perverse) करार दिया, क्योंकि हाईकोर्ट यह विचार करने में विफल रहा कि आरोपियों ने कथित तौर पर जमानत पर रहने के दौरान ही एक मुख्य गवाह की हत्या कर दी थी।
SC/ST एक्ट की धारा 15A(5) पर स्पष्टीकरण
अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि हाईकोर्ट ने जमानत देते समय पीड़ित द्वारा उठाई गई “विशिष्ट और विस्तृत आपत्तियों” पर विचार न करके SC/ST एक्ट की धारा 15A(5) का उल्लंघन किया है।
इस तर्क को संबोधित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हरिराम भांभी बनाम सत्यनारायण में अपने पूर्व के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह स्थापित किया गया था कि सुनवाई का अधिकार अनिवार्य है। हालांकि, पीठ ने ‘सुनवाई के अवसर’ और ‘सुनवाई के परिणाम’ के बीच अंतर स्पष्ट किया।
महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- अधिकार का दायरा: कोर्ट ने कहा, “यह प्रावधान सुनवाई का अवसर सुनिश्चित करता है, न कि अनुकूल परिणाम का अधिकार या पीड़ित द्वारा उठाई गई हर आपत्ति पर विस्तृत निर्णय का अधिकार। एक बार जब पीड़ित को सूचित कर दिया जाता है, भाग लेने की अनुमति दी जाती है, और आपत्तियों को रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति दी जाती है, तो वैधानिक जनादेश पूरा हो जाता है।”
- विस्तृत विश्लेषण आवश्यक नहीं: पीठ ने आगे स्पष्ट किया, “जमानत केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती क्योंकि अदालत ने पीड़ित की दलीलों को स्वीकार नहीं किया… धारा 15A(5) पीड़ित द्वारा प्रस्तुत प्रत्येक दलील के विस्तृत विश्लेषण या स्पष्ट अस्वीकृति को अनिवार्य नहीं करती है।”
चूंकि अपीलकर्ता को हाईकोर्ट द्वारा सूचित किया गया था और सुना गया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धारा 15A(5) के तहत किसी वैधानिक आवश्यकता का उल्लंघन नहीं हुआ है।
जमानत रद्द: हाईकोर्ट का आदेश “स्पष्ट रूप से विकृत”
SC/ST एक्ट के प्रक्रियात्मक उल्लंघन के तर्क को खारिज करने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जमानत आदेश को विकृतता (perversity) और विवेक का प्रयोग न करने (non-application of mind) के आधार पर रद्द कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि: यह मामला 2020 में अपीलकर्ता और उसके दोस्त सुरेश पर हुए हमले (अपराध संख्या 39/2020) से संबंधित है। आरोपियों को सितंबर 2020 में जमानत दी गई थी। हालांकि, 18 दिसंबर 2022 को, जब आरोपी जमानत पर थे, उन्होंने कथित तौर पर मुख्य घायल चश्मदीद गवाह, सुरेश की हत्या कर दी। इसके बाद मार्च 2023 में उनकी जमानत रद्द कर दी गई थी। बाद में, अप्रैल 2025 में, हाईकोर्ट ने उन्हें फिर से जमानत दे दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
कोर्ट का तर्क: शीर्ष अदालत ने “गंभीर परिस्थितियों” (grave supervening circumstances), विशेष रूप से मुख्य गवाह की हत्या, की अनदेखी करने के लिए हाईकोर्ट की आलोचना की। जस्टिस महादेवन ने फैसले में लिखा: “जमानत के पूर्व रद्दीकरण और स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर विचार करने में चूक, आक्षेपित निर्णय को स्पष्ट रूप से विकृत बनाती है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक इतिहास को केवल रिकॉर्ड करना और उसके प्रभाव का मूल्यांकन न करना एक “कोरी औपचारिकता” है। कोर्ट ने माना कि ऐसे गंभीर अपराधों में जमानत देने के लिए लंबित दीवानी विवादों (civil disputes) पर हाईकोर्ट का भरोसा करना कानून की गलत दिशा है।
संयुक्त ट्रायल (Joint Trial) का निर्देश रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के हत्या के प्रयास के मामले और 2022 के हत्या के मामले का संयुक्त ट्रायल (Joint Trial) आयोजित करने के हाईकोर्ट के निर्देश की भी जांच की।
मम्मन खान बनाम हरियाणा राज्य के फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि अलग ट्रायल नियम है और संयुक्त ट्रायल अपवाद है। पीठ ने नोट किया कि दोनों अपराध अलग-अलग घटनाओं, अलग-अलग वर्षों और अलग-अलग तथ्यात्मक आरोपों से जुड़े हैं।
कोर्ट ने कहा: “हाईकोर्ट कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना या ठोस कारण दर्ज किए बिना दो अलग-अलग मामलों के संयुक्त ट्रायल का निर्देश नहीं दे सकता था… संयुक्त ट्रायल के लिए हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश कानूनी रूप से अस्थिर है।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:
- जमानत रद्द: जमानत देने वाले हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया गया। प्रतिवादियों/आरोपियों को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है।
- संयुक्त ट्रायल का आदेश निरस्त: अपराध संख्या 39/2020 और अपराध संख्या 202/2022 के ट्रायल्स को एक साथ करने के निर्देश को रद्द कर दिया गया।
- स्वतंत्र ट्रायल: ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह स्वतंत्र रूप से और पूरी तरह से योग्यता (merits) के आधार पर ट्रायल संचालित करे।
केस विवरण
- केस टाइटल: लक्ष्मणन बनाम राज्य (उप पुलिस अधीक्षक के माध्यम से) और अन्य
- केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या _______ / 2025 [SLP (Crl.) Nos. 6647-6650 of 2025 से उत्पन्न]
- साइटेशन: 2025 INSC 1483
- पीठ: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन

