सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट का अग्रिम जमानत आदेश रद्द किया, कहा– व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ पीड़ितों की पीड़ा पर भी हो ध्यान

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा आवश्यक है, वहीं अदालतों को अपराध पीड़ितों की पीड़ा को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। पीड़ित और अभियुक्त दोनों के अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल देते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने 17 सितंबर को पटना हाईकोर्ट का मार्च 2024 का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें हत्या के मामले के दो आरोपियों को अग्रिम जमानत दी गई थी।

शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट द्वारा मामले को जल्दबाज़ी में निपटाने पर “गंभीर चिंता” जताई और कहा कि उसने स्थापित न्यायिक सिद्धांतों का पालन नहीं किया। पीठ ने कहा, “दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) के तहत अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई का अधिकार सत्र न्यायालय और हाईकोर्ट दोनों को है, लेकिन इस अदालत ने बार-बार कहा है कि हाईकोर्ट को सीधे हस्तक्षेप करने के बजाय पहले वैकल्पिक उपायों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।”

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट: भूमि अधिग्रहण में समय पर मुआवज़ा देने के लिए राज्य जिम्मेदार है, देरी अनुच्छेद 300-ए का उल्लंघन करती है, भले ही निजी फर्म जिम्मेदार हों

पीठ ने कहा कि इस तरीके से एक ओर पीड़ित पक्ष को निचली अदालत में राहत पाने का अवसर मिलता है, वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट बाद में निचली अदालत की न्यायिक दृष्टि का मूल्यांकन कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट की आलोचना की कि उसने अग्रिम जमानत देते समय कोई ठोस कारण दर्ज नहीं किया और न ही शिकायतकर्ता को पक्षकार बनाया।

Video thumbnail

पीठ ने कहा, “व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा जितनी ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है कि अदालतें पीड़ितों की पीड़ा से भी आँख न मूंद लें। अभियुक्त की स्वतंत्रता और पीड़ितों के भयमुक्त वातावरण– दोनों के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।”

न्यायालय ने माना कि इस मामले में अग्रिम जमानत देना “पूरी तरह अनुचित” था और कहा कि हाईकोर्ट ने आरोपों की गंभीरता को पर्याप्त रूप से नहीं समझा। पीठ ने कहा, “यह समझ से परे है कि इतने जघन्य अपराध में हाईकोर्ट ने किस आधार पर आरोपियों को अग्रिम जमानत दी।”

READ ALSO  Where is Param Bir Singh? Asks Supreme Court From Counsel

मामला एक शिकायतकर्ता की अपील पर आया था, जिसमें उसने दिसंबर 2023 में दर्ज एफआईआर में आरोपियों को अग्रिम जमानत देने के पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश रद्द करते हुए आरोपियों को चार सप्ताह के भीतर समर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया।

Ad 20- WhatsApp Banner
READ ALSO  बॉम्बे हाई कोर्ट ने नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए गिरफ्तारी-पूर्व जमानत पर त्वरित निर्णय लेने को कहा

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles