सज़ा निलंबन और दोषसिद्धि स्थगन के मानदंड “पूरी तरह भिन्न”; POCSO मामले में दोषसिद्धि पर रोक लगाने वाले राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त किया

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO मामले में एक आरोपी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने वाले राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि सज़ा निलंबित करना और दोषसिद्धि पर रोक लगाना अलग-अलग कानूनी उपाय हैं, तथा केवल सज़ा निलंबित होने के आधार पर दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दोषसिद्धि पर रोक केवल “असाधारण मामलों” में ही दी जानी चाहिए

इस अपील में प्रमुख कानूनी प्रश्न यह था कि क्या हाई कोर्ट केवल इसलिए दोषसिद्धि स्थगित कर सकता है कि आरोपी की सज़ा पहले ही निलंबित की जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि दोनों राहतों के मानदंड “पूरी तरह भिन्न” हैं। इसी आधार पर उच्चतम न्यायालय ने हाई कोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया और मामले को पुनर्विचार हेतु वापस भेज दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

अपील में 10 जुलाई 2024 को राजस्थान हाई कोर्ट, जयपुर पीठ की डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें आरोपी (प्रतिवादी क्रमांक-2) की दोषसिद्धि पर रोक दी गई थी।

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इससे पहले आरोपी को 23 फरवरी 2023 को विशेष न्यायालय, POCSO, जयपुर ने निम्नलिखित धाराओं के तहत दोषी ठहराया था:

  • आईपीसी, 1860 की धारा 305 और 376
  • POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 3/4
  • एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(w) और 3(2)(v)

हाई कोर्ट की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि दोषसिद्धि पर रोक इस आधार पर दी गई कि 19 अप्रैल 2023 के आदेश से आरोपी की सज़ा पहले ही निलंबित की जा चुकी थी, इसलिए दोषसिद्धि पर रोक भी दी जानी चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने हाई कोर्ट की तर्कसंगति को अस्थिर पाया और कहा कि हाई कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर उचित रूप से विचार नहीं किया

पीठ के मुख्य अवलोकन:

1. सज़ा निलंबन और दोषसिद्धि स्थगन के मानदंड अलग हैं

कोर्ट ने कहा:

“यह अब स्थापित विधि है कि सज़ा निलंबन पर विचार करने के मानदंड और दोषसिद्धि स्थगन पर विचार करने के मानदंड पूरी तरह अलग-अलग होते हैं।”

2. दोषसिद्धि पर रोक केवल “असाधारण मामलों” में

पीठ ने स्पष्ट किया:

“जब तक कोई असाधारण मामला प्रस्तुत न हो, न्यायालयों को दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगानी चाहिए।”

3. हाई कोर्ट ने कोई विशिष्ट कारण दर्ज नहीं किया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“इस बात का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया है कि प्रतिवादी क्रमांक-2 का मामला कैसे असाधारण है या ‘दुर्लभतम में दुर्लभ’ श्रेणी में आता है, जिससे दोषसिद्धि पर रोक दी जा सके।”

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया। साथ ही, मामले को पुनर्विचार के लिए राजस्थान हाई कोर्ट को वापस भेज दिया, यह कहते हुए कि दोषसिद्धि पर रोक तभी दी जा सकती है जब मामला असाधारण परिस्थितियों के मानदंडों पर खरा उतरे।

मामले का विवरण

विवरणजानकारी
मामले का शीर्षकVictim Father बनाम State of Rajasthan & Anr.
मामला संख्याCriminal Appeal of 2025 (Arising out of SLP (Crl.) No. 14790 of 2024)
पीठमुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन
अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ताश्री जयप्रकाश बंसिलाल सोनी, श्री मनोज कुमार चौधरी, श्री रजनीश कुमार, श्री जीवन पाटिल, सुश्री पूजा अग्रवाल, सुश्री श्रुति कृति और सुश्री शिस्बा चावला (AOR)
प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ताश्री शिव मंगल शर्मा (A.A.G.), सुश्री सौभाग्या सुन्द्रियाल, सुश्री निधि जसवाल (AOR), श्री पुनीत परिहार, श्री सर्वजीत प्रताप सिंह, श्री संजीव कुमार एवं M/s Unuc Legal LLP (AOR)

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