सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देशभर में सीनियर एडवोकेट की नियुक्तियों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नई गाइडलाइंस जारी की हैं। न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने मौजूदा मार्किंग सिस्टम को खत्म करते हुए सभी हाईकोर्ट को चार महीनों के भीतर इन नए दिशा-निर्देशों के अनुसार अपने नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट या संबंधित हाईकोर्ट की फुल कोर्ट द्वारा लिया जाएगा। स्थायी सचिवालय (Permanent Secretariat) द्वारा पात्र पाए गए सभी आवेदकों की सूची और उनके द्वारा जमा दस्तावेज फुल कोर्ट के समक्ष रखे जाएंगे।
कोर्ट ने कहा, “संभावना हमेशा बनी रहनी चाहिए कि निर्णय आम सहमति से हो। यदि सहमति नहीं बनती है तो निर्णय लोकतांत्रिक तरीके से मतदान के माध्यम से लिया जाए।”
निर्णय की प्रमुख बातें:
- मार्किंग प्रणाली समाप्त: अब आवेदकों को अंकों के आधार पर मूल्यांकन नहीं किया जाएगा।
- हर साल होगा नामांकन का एक चक्र: सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि साल में एक बार सीनियर एडवोकेट नामांकन की प्रक्रिया चलाई जाए।
- 10 साल की न्यूनतम वकालत अनिवार्य रहेगी: कोर्ट ने कहा कि इस योग्यता मानदंड पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है।
- न्यायाधीश व्यक्तिगत तौर पर नामांकन की सिफारिश नहीं कर सकते: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी जज द्वारा व्यक्तिगत रूप से किसी वकील के नाम की सिफारिश की अनुमति नहीं होगी।
- आवेदन आधारित और स्वतः संज्ञान से नामांकन संभव: वकीलों द्वारा किए गए आवेदन उनके सहमति-पत्र के रूप में माने जाएंगे, लेकिन फुल कोर्ट आवेदन के बिना भी किसी वकील को सीनियर एडवोकेट का दर्जा दे सकती है।
यह फैसला जितेन्द्र @ कल्ला बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली राज्य मामले में सुनाया गया, जो मूलतः एक आपराधिक अपील थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने पाया कि कुछ तथ्यों को छिपाया गया था और झूठी याचिकाएं प्रस्तुत की गई थीं। इसके चलते अधिवक्ता ऑन रिकॉर्ड (AoR) की भूमिका पर सवाल उठे और वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की भूमिका की भी जांच की गई।
वर्तमान में सीनियर एडवोकेट नियुक्ति की प्रक्रिया इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट (2017) मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों पर आधारित है, जिसमें अधिक पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठता की मांग की गई थी। लेकिन बाद में देश के कई हाईकोर्ट्स और बार सदस्यों ने इस व्यवस्था में कुछ बदलाव की आवश्यकता जताई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जो नामांकन प्रक्रियाएं पहले से चल रही हैं, वे इंदिरा जयसिंह के दिशा-निर्देशों के तहत पूरी की जा सकती हैं। लेकिन जब तक नए नियम लागू नहीं होते, तब तक कोई नई नामांकन प्रक्रिया शुरू नहीं की जाएगी।
कोर्ट ने यह भी कहा, “यह स्पष्ट है कि इस निर्णय के आलोक में स्वयं इस कोर्ट को भी अपने नियमों और दिशा-निर्देशों में संशोधन करना होगा।”
न्यायालय ने अंत में यह दोहराया कि नामांकन की प्रणाली को समय-समय पर पुनः मूल्यांकित और बेहतर बनाने का प्रयास जारी रहना चाहिए।