सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए एक हलफनामा दायर करने को कहा कि डीएमके पार्टी के किसी भी वर्तमान या पूर्व मंत्री या विधायक के खिलाफ दर्ज कोई भी आपराधिक मामला — जिसमें पहले अभियोजन की स्वीकृति दी गई थी — जांच पूरी होने से पहले राजनीतिक कारणों से वापस नहीं लिया गया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भूय्यान और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह निर्देश चेन्नई के वकील कौशल गांधी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिका में राज्य के मौजूदा मंत्रियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों और मुकदमों को तमिलनाडु से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की गई है।
पीठ ने आदेश में कहा:

“वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता को यह हलफनामा दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है कि सत्ता में मौजूद राजनीतिक दल के किसी भी वर्तमान या पूर्व मंत्री या विधायक के खिलाफ ऐसा कोई मामला नहीं है जिसमें पहले अभियोजन की अनुमति दी गई हो लेकिन जांच पूरी होने से पहले ही स्वीकृति वापस ले ली गई हो और मामला समाप्त कर दिया गया हो।”
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह “अस्वच्छ मनोभाव” के साथ अदालत पहुंचे हैं। इस पर न्यायमूर्ति भूय्यान ने कहा:
“यह समस्या केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं है, यह पूरे देश में है। अगर आप पेंडोरा का पिटारा खोलेंगे तो इसका असर आप पर ही पड़ेगा।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डी.एस. नायडू ने अदालत को बताया कि कई ऐसे उदाहरण हैं जहां जांच पूरी होने से पहले अभियोजन की स्वीकृति वापस ले ली गई और ऐसे मामलों पर न्यायिक निगरानी की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर के लिए निर्धारित की है। कोर्ट पहले ही अक्टूबर 2023 में राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चुका है और अब इस याचिका की सुनवाई के लिए तैयार है।
कौशल गांधी द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार के वर्तमान अभियोजन तंत्र से स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती, इसलिए मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ मुकदमे अन्य राज्यों में स्थानांतरित किए जाएं।