इंडियाबुल्स के खिलाफ कथित संदिग्ध ऋण मामले में जांच के लिए याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (IHFL)—जिसका नाम अब सम्मान कैपिटल लिमिटेड कर दिया गया है—पर कंपनी अधिनियम का उल्लंघन कर संदिग्ध ऋण स्वीकृत करने और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के आरोपों की आपराधिक जांच की मांग करने वाली याचिका पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जवाब मांगा है।

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने मंगलवार को एजेंसी को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई जुलाई में निर्धारित की, जब कंपनी मामलों के मंत्रालय और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने फर्म के खिलाफ अनियमितताओं से संबंधित रिपोर्ट सौंपी।

मामले ने तब तूल पकड़ा जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दो जांचों का हवाला देते हुए एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें कंपनी और संबंधित संस्थाओं पर गंभीर आरोप लगाए गए। ED के अनुसार, महाराष्ट्र में दर्ज एक मामले में कंपनी पर करीब ₹300 करोड़ की सार्वजनिक धनराशि गबन करने और निवेशकों से धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया गया। रिपोर्ट में मूल्यांकन रिपोर्टों में कथित हेरफेर, नीलामी के आधार मूल्य में छेड़छाड़ और अन्य आपराधिक साजिशों का भी उल्लेख किया गया।

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ED ने अदालत को बताया कि प्रारंभिक जांच में कई आरोपों की पुष्टि हुई है, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) के तहत आगे कार्रवाई के लिए आवश्यक ‘प्रारंभिक अपराध’ दर्ज न होने के कारण जांच आगे नहीं बढ़ सकी। एजेंसी ने कहा कि उसने एक मामले में दिल्ली पुलिस को साक्ष्य सौंप दिए हैं और दूसरे मामले में औपचारिक शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया में है।

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यह मामला सुप्रीम कोर्ट तब पहुंचा जब सिटीजन्स व्हिसलब्लोअर्स फोरम नामक एनजीओ, जिसकी ओर से अधिवक्ता नेहा राठी ने पैरवी की, ने दिल्ली हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद CBI जांच की मांग करते हुए याचिका दाखिल की। एनजीओ ने आरोप लगाया कि IHFL ने ऐसी कंपनियों को ऋण वितरित किए जिनका संचालन संदिग्ध था और जो सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग कर निजी संपत्ति बनाने में लगी थीं। याचिका में यह भी कहा गया कि कई उधारी कंपनियों के निदेशक और पते IHFL से जुड़े हुए थे तथा उन्हें बिना किसी ठोस परिसंपत्ति या व्यवसाय संचालन के ऋण प्रदान किए गए।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2019 में याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि आरोप ठोस साक्ष्य पर आधारित नहीं हैं और प्रस्तुत दस्तावेज सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं, जो वित्तीय कदाचार साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसके बाद IHFL ने याचिकाकर्ता के खिलाफ झूठे आरोप लगाने का आरोप लगाते हुए झूठी गवाही (perjury) की कार्यवाही शुरू करने की मांग की थी।

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नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए सहमति दे दी थी और पहले ही केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, SEBI और ED से जवाब मांगा था।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने ED की जांच की धीमी गति पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “ED आमतौर पर बहुत तेजी से काम करता है।” ED के वकील ने अदालत को आश्वस्त किया कि IHFL की गतिविधियों पर एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट अंतिम चरण में है।

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