आर्बिट्रेशन निष्पादन में सिंगल जज के आदेश के खिलाफ LPA स्वीकार्य नहीं; कानूनी वारिसों को नोटिस देना अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) एक पूर्ण संहिता (self-contained code) है, इसलिए किसी आर्बिट्रल अवार्ड (पंचाट) के निष्पादन (execution) के दौरान पारित सिंगल जज के आदेश के खिलाफ ‘लेटर्स पेटेंट अपील’ (LPA) स्वीकार्य नहीं है।

इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि जब किसी मृतक डिक्री-देनदार (judgment debtor) के कानूनी प्रतिनिधि के खिलाफ निष्पादन की मांग की जाती है, तो सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 21 नियम 22 के तहत नोटिस जारी करना क्षेत्राधिकार के लिए एक अनिवार्य पूर्व शर्त है।

जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक आराधे की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें लेटर्स पेटेंट अपील पर विचार करते हुए एकल न्यायाधीश (Single Judge) के निष्पादन आदेशों पर रोक लगा दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद एक संयुक्त परिवार के व्यवसाय में हुए बंटवारे से जुड़ा है, जिसमें अपीलकर्ता के पिता (स्वर्गीय कांतिलाल दलाल) और उनके चाचा (स्वर्गीय गिरधारीलाल दलाल) शामिल थे। पारिवारिक संपत्ति के विवादों को सुलझाने के लिए मामला मध्यस्थता (Arbitration) में गया, जहां 12 जुलाई, 2010 को एकमात्र मध्यस्थ (Arbitrator) ने अपीलकर्ता भरत कांतिलाल दलाल के पक्ष में फैसला सुनाया।

इस अवार्ड के बाद, अपीलकर्ता ने अपने पिता के खिलाफ दुबई और सिंगापुर में निष्पादन कार्यवाही शुरू की। पिता ने 16 सितंबर, 1994 को अपने भाई (चाचा) के पक्ष में एक वसीयत निष्पादित की थी। 8 मार्च, 2013 को पिता का निधन हो गया। इसके बाद, अपीलकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में निष्पादन याचिका दायर की और चाचा (जो वसीयत के लाभार्थी थे) से संपत्तियों का खुलासा करने की मांग की। चाचा ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह अवार्ड के पक्षकार (party) नहीं थे और उन्होंने अवार्ड को अमान्य घोषित करने के लिए एक मुकदमा दायर किया।

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18 दिसंबर, 2014 को बॉम्बे हाईकोर्ट के सिंगल जज ने आदेश दिया कि निष्पादन आगे बढ़ना चाहिए और आदेश 21 नियम 22 CPC के तहत नोटिस जारी किया जाना चाहिए। प्रतिवादियों (चाचा के वारिसों) ने इस आदेश को डिवीजन बेंच के समक्ष चुनौती दी, जिसने 6 मार्च, 2018 को सिंगल जज के आदेश पर रोक लगा दी। इसी रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।

कोर्ट के समक्ष दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से दलील दी गई कि आर्बिट्रेशन एक्ट अपने आप में एक पूर्ण कोड है। अधिनियम की धारा 5 (न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा) और धारा 37 (अपील योग्य आदेश) का हवाला देते हुए कहा गया कि निष्पादन कार्यवाही में पारित सिंगल जज के आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) का कोई प्रावधान नहीं है।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि वे मध्यस्थता कार्यवाही और 2010 के अवार्ड के लिए अजनबी (strangers) थे, इसलिए उनके पास अपील करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि अवार्ड में उन संपत्तियों का जिक्र है जिनमें उनका भी हित है।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से दो कानूनी मुद्दों पर विचार किया: आदेश 21 नियम 22 CPC के तहत नोटिस की आवश्यकता और लेटर्स पेटेंट अपील की पोषणीयता (maintainability)।

1. आदेश 21 नियम 22 CPC की अनिवार्यता

कोर्ट ने पाया कि आदेश 21 नियम 22 CPC के तहत, यदि डिक्री के दो साल बाद या किसी कानूनी प्रतिनिधि के खिलाफ निष्पादन की मांग की जाती है, तो नोटिस जारी करना अनिवार्य है।

फैसला लिखते हुए जस्टिस आलोक आराधे ने कहा:

“आदेश 21 नियम 22 (1) में ‘shall’ (होगा) शब्द का उपयोग किसी भी अस्पष्टता की गुंजाइश नहीं छोड़ता है। यह एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है, बल्कि क्षेत्राधिकार की नींव है।”

अदालत ने जोर देकर कहा कि कानूनी प्रतिनिधि को अपनी बात रखने का मौका दिए बिना उसकी संपत्ति पर निष्पादन का बोझ नहीं डाला जा सकता। यह प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) का सिद्धांत है।

2. LPA की पोषणीयता (Maintainability)

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष अपील की पोषणीयता पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी निष्पादन कार्यवाही में मृतक पिता की वसीयत के निष्पादक/कानूनी प्रतिनिधि के रूप में शामिल हैं, न कि अपनी व्यक्तिगत क्षमता में। इसलिए, उन्हें आर्बिट्रल अवार्ड के लिए ‘तीसरा पक्ष’ (Third Party) नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने कहा:

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“आर्बिट्रेशन एक्ट एक स्व- निहित संहिता है। इसका विधायी ढांचा न्यायिक हस्तक्षेप को सीमित करता है। सिंगल जज के आदेश आर्बिट्रेशन एक्ट के तहत निष्पादन का हिस्सा थे, न कि सामान्य CPC प्रक्रिया का, इसलिए इनके खिलाफ LPA स्वीकार्य नहीं है।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के 6 मार्च, 2018 के आदेशों को रद्द कर दिया और लेटर्स पेटेंट अपीलों को खारिज कर दिया।

कार्यवाही को सही कानूनी रास्ते पर लाने के लिए, कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  1. सिंगल जज निष्पादन याचिका में प्रतिवादियों को आदेश 21 नियम 22 (1) CPC के तहत नोटिस जारी करेंगे
  2. नोटिस मिलने पर, प्रतिवादियों को आदेश 21 नियम 23 (2) CPC के तहत निष्पादन कार्यवाही पर अपनी आपत्तियां दर्ज करने की छूट होगी।
  3. सिंगल जज इन आपत्तियों पर गुण-दोष (merit) के आधार पर विचार करेंगे, और वे 2014 के पिछले आदेशों की टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होंगे।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: भरत कांतिलाल दलाल (मृतक) द्वारा एल.आर. बनाम चेतन सुरेंद्र दलाल और अन्य
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या 1026-1027 ऑफ 2019
  • कोरम: जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक आराधे
  • साइटेशन: 2025 INSC 1334

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