सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई 2025 को तमिलनाडु पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम, 1955 के नियम 25(क) में किए गए प्रतिपादित संशोधन को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। यह संशोधन 20% विभागीय कोटे के तहत नियुक्त इन-सर्विस सब-इंस्पेक्टरों को खुले बाज़ार से नियुक्त अभ्यर्थियों पर वरिष्ठता प्रदान करता था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कार्यपालक निर्देश वैधानिक प्रावधानों के विपरीत नहीं हो सकते और संशोधन को संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन बताया।
पृष्ठभूमि:
यह फैसला आर. रंजीथ सिंह और अन्य द्वारा दायर नागरिक अपीलों पर आया, जिसमें तमिलनाडु में पुलिस उपनिरीक्षकों की वरिष्ठता निर्धारण को चुनौती दी गई थी। अपीलकर्ता 80% सीधे भर्ती कोटे के अंतर्गत खुले प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से चयनित हुए थे, जबकि 20% पद इन-सर्विस उम्मीदवारों—जैसे कि हेड कॉन्स्टेबल और कॉन्स्टेबल—के लिए आरक्षित थे। यह आरक्षण 13 जुलाई 1995 को जारी शासनादेश (जी.ओ.) क्रमांक 1054 के माध्यम से लागू किया गया था और 1996 व 2009 के शासनादेशों में इसकी पुनरावृत्ति हुई, परंतु उस समय तक वैधानिक नियमों में कोई संशोधन नहीं किया गया।
2017 में जी.ओ. क्रमांक 868 दिनांक 21.11.2017 द्वारा नियम 25(क) में संशोधन कर विभागीय अभ्यर्थियों को उसी भर्ती वर्ष में खुले बाज़ार के अभ्यर्थियों से ऊपर वरिष्ठता प्रदान की गई। इस संशोधन को 13 जुलाई 1995 से प्रभावी किया गया और राजपत्र में प्रकाशित कर इसे लागू किया गया।
अपीलकर्ताओं की दलील:
अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि इन-सर्विस उम्मीदवारों को प्रतिपादित रूप से वरिष्ठता देना असंवैधानिक एवं मनमाना है। उनका कहना था कि सीधी भर्ती में वरिष्ठता केवल योग्यता (भर्ती परीक्षा में प्राप्त अंकों) के आधार पर तय होनी चाहिए। यह संशोधन अधिक योग्य खुले बाज़ार के अभ्यर्थियों की तुलना में कम योग्यता वाले इन-सर्विस उम्मीदवारों को ऊपर रखता है, जो अनुचित है।
राज्य सरकार का पक्ष:
तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया कि यह संशोधन पुलिस बल के निम्न स्तरों पर ठहराव (stagnation) को दूर करने के उद्देश्य से किया गया। उन्होंने दावा किया कि 1995 से जारी कार्यपालक निर्देशों में इन-सर्विस उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी गई थी और 2017 का संशोधन केवल उसी नीति को नियमित करता है। उन्होंने यह भी कहा कि वरिष्ठता पलटने से प्रशासनिक कार्यों में गंभीर व्यवधान होगा और पदोन्नत अधिकारियों को वापस भेजना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ:
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए 2017 का संशोधन रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा:
“कार्यपालक निर्देश किसी अधिनियम की अनुपूरक व्याख्या या उन क्षेत्रों को आवृत्त कर सकते हैं जहाँ अधिनियम विस्तृत नहीं है, परंतु वे वैधानिक प्रावधानों के विपरीत नहीं हो सकते या उनके प्रभाव को कम नहीं कर सकते।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक 2017 का औपचारिक संशोधन नहीं हुआ था, तब तक नियमों में कोई वैधानिक परिवर्तन नहीं किया गया, फिर भी इन-सर्विस उम्मीदवारों को नियुक्ति और वरिष्ठता दी जाती रही—यह प्रक्रिया अस्वीकार्य है।
कोर्ट ने Jaiveer Singh vs. State of Uttarakhand (2023) और State of Madhya Pradesh vs. G.S. Dall and Flour Mills (1992) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि प्रशासनिक निर्देशों से वैधानिक नियमों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने आगे कहा कि:
“कोई भी अधिनियम जो प्रतिपादित रूप से किसी व्यक्ति के अधिकार को छीन ले, उसे यह न्यायालय रद्द करने के लिए बाध्य है।”
कोर्ट द्वारा जारी निर्देश:
- 2017 का शासनादेश और नियम 25(क) में किया गया संशोधन रद्द किया गया।
- वर्ष 1995 से जारी सभी ग्रेडेशन सूचियाँ 60 दिनों के भीतर पुनः तैयार की जाएंगी, और यह केवल भर्ती परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर होगी, चाहे अभ्यर्थी इन-सर्विस हो या खुले श्रेणी का।
- जो अधिकारी पहले से पदोन्नत हो चुके हैं, उन्हें पदावनत नहीं किया जाएगा, लेकिन जब तक नई वरिष्ठता सूची नहीं बनती, आगे की कोई पदोन्नति पुरानी सूची के आधार पर नहीं की जाएगी।
- भविष्य में सीधी भर्ती (20% इन-सर्विस कोटे सहित) एक ही सामान्य परीक्षा के माध्यम से होगी और वरिष्ठता पूरी तरह योग्यता के आधार पर तय की जाएगी।