दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को पकड़ने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, 11 अगस्त के निर्देशों पर रोक से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सभी आवारा कुत्तों को पकड़ने के अपने 11 अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संदीप मेहता और एन.वी. अंजारिया की पीठ ने नगर निकायों को दिए गए निर्देशों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि आवारा कुत्तों के हमलों की समस्या “मौन बहुमत” को प्रभावित कर रही है, जबकि “मुखर अल्पसंख्यक” इसका विरोध कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हर साल 305 लोगों की मौत रेबीज से होती है, जिनमें अधिकांश 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं।

“कुत्तों को मारना नहीं है, उन्हें अलग करना है… माता-पिता अपने बच्चों को खेलने के लिए बाहर नहीं भेज सकते। छोटी बच्चियों को विकृत किया जा रहा है।”
मेहता ने कहा कि बंध्याकरण से रेबीज पर रोक नहीं लगी है और मौजूदा नियमों में समाधान न होने की स्थिति में अदालत को हस्तक्षेप करना होगा।

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याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां: बुनियादी ढांचे और प्रक्रिया में कमी

एनजीओ ‘प्रोजेक्ट काइंडनेस’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि आश्रय गृह नहीं बनाए गए हैं और बंध्याकरण के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग हुआ है। उन्होंने कहा कि 11 अगस्त के निर्देश सुओ मोटो बिना नोटिस के जारी हुए और पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में पकड़े गए कुत्तों के मारे जाने या घायल होने की आशंका है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, अभिषेक मनु सिंघवी, सिद्धार्थ दवे, अमन लेखी और कॉलिन गोंसाल्वेस ने भी आदेश का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि मौजूदा ढांचा हजारों पकड़े जाने वाले कुत्तों को समायोजित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। सिंघवी ने संसदीय आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली में “शून्य रेबीज मौत” हुई है और “डर का माहौल” बनाने से बचना चाहिए।

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आदेश के समर्थन में दलीलें

एक अन्य वकील ने, आदेश का समर्थन करते हुए, गंभीर कुत्ता हमले के मामलों के चिकित्सा साक्ष्य पेश किए और बताया कि क्षेत्र में हर 24 व्यक्तियों पर एक आवारा कुत्ता है।

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि संसद ने नियम बनाए हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। उन्होंने सभी हस्तक्षेपकर्ताओं को शपथपत्र और साक्ष्य दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा:

“एक ओर इंसान पीड़ित हैं और दूसरी ओर पशुप्रेमी मौजूद हैं। कुछ जिम्मेदारी लें।”

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11 अगस्त का आदेश

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने सुओ मोटो मामले में दिल्ली के संवेदनशील क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए आवारा कुत्तों को पकड़ने और आठ सप्ताह के भीतर कम से कम 5,000 कुत्तों की क्षमता वाले आश्रय गृह बनाने का निर्देश दिया था। आदेश में कुत्तों को दोबारा सड़कों पर छोड़ने पर रोक, बंध्याकरण, टीकाकरण और डी-वॉर्मिंग को अनिवार्य किया गया था तथा आश्रय गृहों में सीसीटीवी, पर्याप्त स्टाफ, भोजन और चिकित्सा सुविधाएं रखने का निर्देश दिया गया था।
साथ ही, कुत्ता काटने की शिकायत दर्ज करने के लिए हेल्पलाइन, चार घंटे के भीतर संबंधित कुत्ते को पकड़ने और मासिक टीकाकरण व उपचार का डेटा प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था। इन उपायों में बाधा डालने पर अवमानना कार्यवाही की चेतावनी भी दी गई थी।

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यह आदेश 2024 में दिल्ली में दर्ज 25,000 से अधिक कुत्ता काटने के मामलों और जनवरी 2025 में 3,000 से ज्यादा मामलों का हवाला देते हुए दिया गया था। अदालत ने माना कि आवारा कुत्तों का खतरा नागरिकों के अनुच्छेद 19(1)(d) और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इस आदेश के बाद पशु अधिकार संगठनों ने व्यापक विरोध दर्ज कराया था।

14 अगस्त को, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने विभिन्न पीठों में लंबित समान मामलों में विरोधाभासी आदेशों की आशंका को देखते हुए इस मामले को वर्तमान तीन-न्यायाधीश पीठ के समक्ष भेजा था। अब अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है, जो बाद में सुनाया जाएगा।

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