सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मामले में असम पुलिस को किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से रोक दिया। यह एफआईआर द वायर में प्रकाशित ऑपरेशन सिंदूर संबंधी लेख को लेकर दर्ज की गई थी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म (FIJ) — जो द वायर का संचालन करता है — द्वारा दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। इस याचिका में भारतीय दंड संहिता (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 152 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
धारा 152 में “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को संकट में डालने वाले कृत्य” को अपराध माना गया है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी जानबूझकर या सप्रयास शब्दों, लेखन, संकेत, दृश्य प्रस्तुति, इलेक्ट्रॉनिक संचार, वित्तीय साधन या अन्य माध्यमों से अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को उकसाता है, या ऐसे भावनाओं को बढ़ावा देता है, उसे आजीवन कारावास या अधिकतम सात वर्ष की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने वरदराजन और FIJ के सदस्यों को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया और मामले को 8 अगस्त को नोटिस जारी किए गए एक समान लंबित मामले के साथ जोड़ दिया।
एफआईआर द वायर में प्रकाशित उस लेख के बाद दर्ज की गई थी जिसमें ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख था — यह एक कथित भारतीय सैन्य अभियान था, जिसके तहत मई में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी ढांचे को निशाना बनाया गया था। यह कार्रवाई 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में की गई बताई जाती है।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम BNS की धारा 152 के दायरे और इसके संभावित दुरुपयोग को लेकर चल रही बहस के बीच आया है, जिसे आलोचक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला प्रावधान मानते हैं।