सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 2002 के गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में दोषियों की उस आपत्ति को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी अपीलों की सुनवाई दो-जजों की पीठ नहीं कर सकती, क्योंकि मामले में पहले 11 आरोपियों को फांसी की सज़ा दी गई थी।
न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने इस आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने पहले ही ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है, इसलिए तीन-जजों की पीठ की आवश्यकता नहीं है।
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने दो दोषियों की ओर से पेश होकर दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने मो. आरिफ उर्फ अशफाक मामले में यह तय किया था कि फांसी की सजा से जुड़े मामलों की सुनवाई तीन जजों की पीठ को ही करनी चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर यह दो-जजों की पीठ किसी आरोपी को फांसी की सजा देती है, तो फिर उस पर तीन-जजों की नई पीठ के समक्ष दोबारा सुनवाई करनी पड़ेगी।”
लेकिन पीठ ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों और 2014 के संविधान पीठ के फैसले के अनुसार केवल उन्हीं मामलों में तीन जजों की पीठ जरूरी है जहां हाईकोर्ट ने फांसी की सजा दी हो या उसे बरकरार रखा हो। “गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। इसलिए इस मामले में दो-जजों की पीठ द्वारा सुनवाई में कोई बाधा नहीं है,” न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा।
पीठ ने कहा, “आपत्ति खारिज की जाती है,” और मामले की अंतिम सुनवाई शुरू कर दी।
इससे पहले 24 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह 6 और 7 मई को गोधरा कांड से जुड़े अपीलों की अंतिम सुनवाई शुरू करेगा। यह अपीलें गुजरात सरकार और कई दोषियों द्वारा दायर की गई हैं।
27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद राज्य भर में दंगे भड़क उठे थे।
गुजरात हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2017 के अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए 31 आरोपियों की सजा को बरकरार रखा था और 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।
गुजरात सरकार ने इन 11 दोषियों की फांसी को उम्रकैद में बदलने के फैसले को चुनौती दी है, जबकि कई अन्य दोषियों ने अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की है।