सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें न्यायिक प्रणाली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) के “बिना नियमन” उपयोग पर रोक लगाने और दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि यह चिंता वाजिब है, लेकिन इसे न्यायिक आदेशों के बजाय प्रशासनिक स्तर पर बेहतर तरीके से संबोधित किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता कार्तिकेय रावल की याचिका पर सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम लाल दास ने उनकी ओर से पैरवी करते हुए कहा कि AI-जनित सामग्री कई बार “काल्पनिक न्यायिक मिसालें और निर्णय” तैयार कर देती है, और निचली अदालतों में ऐसी सामग्री का हवाला भी दिया जाने लगा है।
दास ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में अधीनस्थ न्यायालय “अस्तित्व में ही नहीं” रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख कर रहे हैं, इसलिए शीर्ष अदालत के नियामक दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।
इन चिंताओं को स्वीकार करते हुए CJI ने कहा कि यह “बार और न्यायपालिका दोनों के लिए सबक है।” उनके अनुसार, AI से प्राप्त किसी भी सामग्री की जांच-पड़ताल की जिम्मेदारी वकीलों और न्यायाधीशों दोनों पर है और इसे न्यायिक अकादमियों तथा बार संस्थाओं में प्रशिक्षण के जरिए संभाला जा सकता है।
CJI ने स्पष्ट किया— “हम AI का उपयोग बहुत सतर्कता के साथ करते हैं और नहीं चाहते कि यह हमारे न्यायिक निर्णय को प्रभावित या नियंत्रित करे।” उन्होंने यह भी कहा कि AI सहायक भूमिका निभा सकता है, लेकिन वह न तो न्यायिक तर्क का स्थान ले सकता है और न ही उसे प्रभावित कर सकता है।
दास ने तर्क दिया कि केरल हाई कोर्ट जैसे कुछ न्यायालयों ने संरचित तंत्र विकसित किया है और सुप्रीम कोर्ट ने भी AI पर श्वेत पत्र जारी किया है। इस पर CJI ने कहा कि चिंता सही है लेकिन “न्यायिक रूप से हस्तक्षेप योग्य नहीं।”
मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया और कहा— “जिस किसी की भी नीयत ईमानदार है, वह हमें सुझाव भेज सकता है। आप हमें मेल कर सकते हैं।”
बेंच का रुख भांपते हुए दास ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया और याचिका वापस ले ली गई।

