सुप्रीम कोर्ट ने डीआरटी अध्यक्ष अधिकारी की निलंबन बढ़ाए जाने के खिलाफ याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चंडीगढ़ स्थित डेट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी)-II के अध्यक्ष अधिकारी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने निलंबन की अवधि बढ़ाए जाने के आदेश को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के जुलाई के आदेश को बरकरार रखा, जिसने अधिकारी की याचिका को खारिज कर दिया था। यह अधिकारी, जो सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी हैं, फरवरी 2022 में डीआरटी में नियुक्त हुए थे। उन्होंने दावा किया कि उनके पास डीआरटी में सबसे अधिक निपटान दरों में से एक थी।

लेकिन शीर्ष अदालत ने बार एसोसिएशन की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए कहा, “अगर आप वकीलों को बहस ही नहीं करने देंगे, तो आप रोज़ाना सभी केस निपटा सकते हैं।”

Video thumbnail

नियुक्ति के कुछ समय बाद ही डीआरटी बार एसोसिएशन ने आरोप लगाया कि अधिकारी स्थगन (adjournment) देने से इनकार करते थे, कई मामलों में एकतरफा (ex-parte) आदेश पारित किए और केस बिना सुनवाई खारिज कर दिए। इसके विरोध में वकीलों ने उनके सामने पेश होना बंद कर दिया।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने तेजस्वी यादव को अपनी 'गुजराती ठग' टिप्पणी वापस लेते हुए 'उचित बयान' दाखिल करने का निर्देश दिया

इसके बाद बार एसोसिएशन ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2022 में वकीलों की हड़ताल की निंदा करते हुए अध्यक्ष अधिकारी को प्रतिकूल आदेश पारित करने से रोका। बाद में दिसंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में संशोधन कर उन्हें मामलों की सुनवाई करने और मेरिट के आधार पर निर्णय देने की अनुमति दी।

दिल्ली स्थित डेट रिकवरी अपीलीय ट्रिब्यूनल (डीआरएटी) के अध्यक्ष की प्रारंभिक जांच में उनके अनुचित व्यवहार और मामलों को 2026 तक स्थगित करने जैसी बातें सामने आईं, जिन्हें हाईकोर्ट ने रिकवरी ऑफ डेट्स एंड बैंकरप्सी एक्ट, 1993 के उद्देश्य के खिलाफ बताया।

READ ALSO  अध्यापक के पद पर नियुक्ति की योग्यता है तो वर्ष में दो डिग्री लेने पर बर्खास्तगी अवैध

इसके बाद नवंबर 2023 में सर्च-कम-सेलेक्शन कमेटी ने उनके निलंबन की सिफारिश की। फरवरी 2024 में उन्हें निलंबित किया गया और बाद में इस अवधि को बढ़ाया गया।

अधिकारी ने दिल्ली हाईकोर्ट में दलील दी कि उन्हें मेहनत से काम करने और वकीलों को ‘सुविधा नहीं देने’ के कारण सज़ा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए। हालांकि हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।

READ ALSO  धारा 468 सीआरपीसी के तहत परिसीमा की गणना करने की प्रासंगिक तारीख क्या है? मद्रास हाईकोर्ट ने बताया
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles