सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा सीटों के जल्द परिसीमन की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 170(3) के तहत 2026 के बाद की जनगणना तक परिसीमन की अनुमति नहीं है।
पीठ ने कहा कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 26 में सीटों की संख्या बढ़ाने का प्रावधान संविधान में मौजूद रोक को पार नहीं कर सकता। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि इस चरण पर भारत निर्वाचन आयोग या केंद्र सरकार को परिसीमन शुरू करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।
याचिका में क्या मांग की गई थी?
याचिका में पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 26(1) के तत्काल क्रियान्वयन की मांग की गई थी। इस प्रावधान में आंध्र प्रदेश की विधानसभा सीटों की संख्या 175 से बढ़ाकर 225 और तेलंगाना की सीटों की संख्या 119 से बढ़ाकर 153 करने का प्रस्ताव है।

याचिकाकर्ता का कहना था कि अधिनियम के लागू हुए दस साल से अधिक हो चुके हैं, फिर भी केंद्र और चुनाव आयोग ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया, जिससे दोनों राज्यों की जनता न्यायसंगत प्रतिनिधित्व से वंचित है। याचिका में जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए परिसीमन का उदाहरण भी दिया गया था।
केंद्र और निर्वाचन आयोग की दलील: संविधान सर्वोच्च
केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 170(3) का हवाला देते हुए जवाब दिया कि 84वें संविधान संशोधन (2002) के तहत 2026 के बाद की पहली जनगणना तक पूरे देश में परिसीमन पर रोक है।
सरकार ने तर्क दिया कि एक अधिनियम (statutory provision) संविधान से ऊपर नहीं हो सकता और जम्मू-कश्मीर का परिसीमन एक विशिष्ट अधिनियम—जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019—के तहत किया गया था, जो अन्य राज्यों पर लागू नहीं होता।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: संविधान अधिनियम से ऊपर
सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों से सहमति जताई और कहा कि किसी भी विधिक प्रावधान को संविधान की व्यवस्था के अनुरूप पढ़ा जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
“पुनर्गठन अधिनियम की धारा 26 कोई अलग टापू नहीं है; इसे संविधान की समग्र योजना के साथ पढ़ा जाना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 170(3) स्पष्ट रूप से परिसीमन को 2026 के बाद होने वाली जनगणना तक स्थगित करता है।
जम्मू-कश्मीर के उदाहरण को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:
“जम्मू-कश्मीर का परिसीमन 2019 के पुनर्गठन अधिनियम के तहत एक विशेष परिस्थिति में हुआ। यह अनुच्छेद 170 के अधीन शासित अन्य राज्यों पर लागू नहीं होता।”
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि यह संवैधानिक रोक जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए है ताकि बेहतर जनसंख्या प्रबंधन करने वाले राज्यों को उनके विधायी प्रतिनिधित्व में नुकसान न हो।
फैसला: याचिका खारिज, परिसीमन अब केवल 2026 के बाद
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में न तो परिसीमन और न ही सीटों की संख्या में वृद्धि 2026 के बाद होने वाली जनगणना से पहले हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि पुनर्गठन अधिनियम की धारा 26 केवल तब लागू होगी जब यह संविधान की समयसीमा के अनुरूप हो।