सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को “कैश-फॉर-जॉब” घोटाले से जुड़े मामले में पूर्व तमिलनाडु मंत्री सेंथिल बालाजी के खिलाफ अपनी पूर्व टिप्पणियों को हटाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह अपने पुराने आदेशों का “एक भी शब्द” नहीं बदलेगा, हालांकि यह स्पष्ट कर दिया कि ये टिप्पणियां लंबित ट्रायल को प्रभावित नहीं करेंगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बालाजी के खिलाफ की गई टिप्पणियों को हटाने की तीन अर्जी खारिज कर दीं। इनमें सितंबर 2022 का आदेश शामिल है, जिसमें उनके खिलाफ आपराधिक शिकायतें बहाल की गई थीं; मई 2023 का फैसला, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उनके खिलाफ जांच की अनुमति दी गई थी; और पिछले वर्ष का आदेश, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी जमानत रद्द करने से इनकार किया गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “जिन न्यायाधीशों ने आदेश या फैसला दिया है, उनके सेवानिवृत्त होने के बाद अर्जी दाखिल करना फोरम शॉपिंग जितना ही गलत है। ऐसी अर्जियां केवल इसी आधार पर खारिज की जा सकती हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांत के अनुसार ट्रायल कोर्ट को उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना मामले का निपटारा करना चाहिए।

बालाजी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने टिप्पणियां हटाने पर जोर नहीं दिया, बल्कि यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि ये ट्रायल को प्रभावित न करें। अदालत ने इस सीमित मांग को स्वीकार करते हुए अर्जियों का निपटारा कर दिया।
पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि ये अर्जियां दो साल बाद और तभी क्यों दाखिल की गईं जब संबंधित न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो चुके थे।
पीड़ित पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बताया कि एफआईआर को क्लब करने से जुड़े मामले में शीर्ष पांच आरोपी पूर्व मंत्री, उनके करीबी सहयोगी और 25 अधिकारी हैं, जबकि 350 से अधिक गवाहों के बयान अभी दर्ज होने बाकी हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 13 अगस्त को सुनवाई करेगा।
बालाजी ने 27 अप्रैल को मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें “पद और स्वतंत्रता” में से एक चुनने की चेतावनी दी थी। बाद में उन्हें दोबारा मंत्री पद पर बहाल कर दिया गया। ईडी ने जुलाई 2021 में उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था, जो 2018 में तमिलनाडु पुलिस की कई एफआईआर और सरकारी नौकरी के बदले रिश्वत लेने के आरोपों पर आधारित था।