सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को निर्देश दिया कि कर्नाटक सरकार द्वारा डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार के खिलाफ disproportionate assets (डीए) मामले में सीबीआई जांच की अनुमति वापस लेने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि इस मामले की पहले भी सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, जो शिवकुमार की ओर से पेश हुए, ने अदालत को याद दिलाया कि सीजेआई ने पहले कहा था कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अदालतों में नहीं लड़ी जानी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि “न्याय के हित में” यह उचित होगा कि याचिकाओं की सुनवाई उसी पीठ द्वारा की जाए और रजिस्ट्री को इन्हें जस्टिस सूर्यकांत की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।

सीबीआई ने अक्टूबर 2020 में शिवकुमार के खिलाफ disproportionate assets केस दर्ज किया था। यह मंजूरी सितंबर 2019 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की सिफारिश पर दी थी, जिसने 2017 से 2019 तक आयकर विभाग की जांचों के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच की थी।
सीबीआई ने आरोप लगाया था कि 2013 से 2018 के बीच मंत्री रहते हुए शिवकुमार ने अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की।
सितंबर 2019 में ईडी ने शिवकुमार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था और अक्टूबर में उन्हें जमानत पर रिहा किया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी का केस रद्द कर दिया और कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप केवल निर्धारित अपराध से जुड़े होने चाहिए।
23 नवंबर 2023 को सिद्धारमैया सरकार ने सीबीआई जांच की अनुमति वापस लेते हुए कहा कि 2019 का निर्णय कानूनी रूप से अस्थिर है। इसके बाद मामले की जांच राज्य लोकायुक्त को सौंप दी गई।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सीबीआई और भाजपा नेता बसनगौड़ा आर. पाटिल यात्नाल की याचिकाओं को खारिज करते हुए इन्हें “गैर-प्रवर्तनीय” माना।
इसके बाद सीबीआई और यात्नाल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 17 सितंबर 2024 को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने शिवकुमार और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था।
अब सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश से यह मामला फिर से जस्टिस सूर्यकांत की पीठ को भेजा गया है, जहां सीबीआई और राज्य सरकार को अपना पक्ष रखना होगा।