सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई जब उसने अंतिम चरण की सुनवाई के दौरान यह मांग की कि ट्रिब्यूनल सुधार (तर्कसंगतीकरण और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 2021 को बड़ी पीठ के पास भेजा जाए।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ, जिसने पहले ही याचिकाकर्ताओं की अंतिम दलीलें सुन ली थीं, ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर करने की उम्मीद सरकार से नहीं थी।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने नाराजगी जताते हुए कहा, “पिछली तारीख को आपने (अटॉर्नी जनरल) इस तरह की आपत्तियां नहीं उठाईं और व्यक्तिगत कारणों से स्थगन मांगा था। अब पूरे मामले को गुण-दोष के आधार पर सुनने के बाद आप ऐसा नहीं कर सकते… हमें उम्मीद नहीं थी कि केंद्र इस तरह की रणनीति अपनाएगा।”
पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र इस पीठ से बचना चाहता है, क्योंकि मुख्य न्यायाधीश गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि सरकार की मंशा सुनवाई टालने की नहीं है और यह मुद्दा पहले ही उनके जवाब में उठाया गया था। उन्होंने आग्रह किया कि अदालत इसे “गलत न समझे।”
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “अगर हम आपकी अर्जी खारिज करते हैं तो हमें यह कहना पड़ेगा कि केंद्र इस पीठ से बचना चाहता है। अब जब एक पक्ष की दलीलें पूरी तरह सुन ली गई हैं, तो इस चरण पर हम ऐसी बातें नहीं सुनेंगे।”
न्यायमूर्ति चंद्रन ने भी कहा कि अगर केंद्र को यह मुद्दा उठाना था तो पहले करना चाहिए था। “कम से कम किसी चरण पर तो यह मुद्दा उठाना चाहिए था… वह भी अब एक अलग अर्जी देकर? आपने पिछली बार स्थगन इसलिए लिया था ताकि आप दलीलें दे सकें,” उन्होंने कहा।
मुख्य न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल से कहा, “आप कृपया (वरिष्ठ अधिवक्ता) अरविंद दातार द्वारा दी गई दलीलों का जवाब देने तक ही सीमित रहें। अगर हमें लगेगा कि बड़ी पीठ के पास भेजने की आवश्यकता है, तो हम स्वयं ऐसा करेंगे — लेकिन आपकी ‘मध्यरात्रि’ में आई अर्जी पर नहीं।”
अटॉर्नी जनरल ने अपनी अंतिम दलीलें शुरू करते हुए कहा कि सरकार ने ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 को “लंबे विचार-विमर्श” के बाद पारित किया था और अदालत को चाहिए कि वह कानून को “कुछ समय के लिए स्थिर रहने” दे।
“अदालत को कानून को निरस्त नहीं करना चाहिए,” उन्होंने कहा। “यह कानून ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों को सुव्यवस्थित करने और कामकाज को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से लाया गया है। चयन प्रक्रिया में योग्यता से समझौता नहीं होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि ट्रिब्यूनल व्यवस्था अब विकसित हो चुकी है और इसे स्थिर होने के लिए कुछ और समय दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर से उन याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू की थी जिनमें ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 की विभिन्न धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस कानून के तहत कई अपीलीय ट्रिब्यूनलों को समाप्त कर दिया गया था, जिनमें फिल्म प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल भी शामिल है, और ट्रिब्यूनल सदस्यों की नियुक्ति व कार्यकाल से जुड़ी शर्तों में बदलाव किया गया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार, जो याचिकाकर्ता मद्रास बार एसोसिएशन की ओर से पेश हुए, ने कहा था कि जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल सुधार अध्यादेश, 2021 की कई धाराओं को रद्द कर दिया था क्योंकि वे न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती थीं।
इसके बावजूद, केंद्र ने अगस्त 2021 में लगभग उन्हीं प्रावधानों के साथ नया कानून पारित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि चार साल का कार्यकाल न्यायिक स्वतंत्रता के लिए हानिकारक है और इसे कम से कम पांच साल होना चाहिए। न्यायपीठ ने यह भी स्पष्ट किया था कि न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष नहीं रखी जा सकती और 10 वर्ष की प्रैक्टिस पर्याप्त योग्यता है।
अदालत ने यह भी कहा था कि नियुक्ति केवल सर्च-कम-सेलेक्शन कमेटी की अनुशंसित दो नामों में से चुनने के सरकारी अधिकार पर भी रोक लगाई गई थी।
अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को फिर शुरू होगी।




