सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को कड़ी फटकार लगाई और सवाल उठाया कि जब 65 किलोमीटर की दूरी तय करने में यात्रियों को 12 घंटे लग रहे हैं, तो उनसे 150 रुपये टोल क्यों वसूला जाए।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने यह टिप्पणी की, जब एनएचएआई और कंसेशनायर गुरुवायूर इन्फ्रास्ट्रक्चर की उस अपील पर सुनवाई हो रही थी जिसमें केरल हाईकोर्ट के पलियेक्कारा टोल प्लाजा (त्रिशूर) पर टोल वसूली निलंबित करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “अगर किसी सड़क को तय करने में एक घंटे का समय लगता है और उसी में 12 घंटे लग जाएं, तो व्यक्ति से 150 रुपये टोल क्यों वसूला जाए?”

हाईकोर्ट का आदेश
केरल हाईकोर्ट ने 6 अगस्त को चार हफ्तों के लिए टोल वसूली निलंबित कर दी थी। अदालत ने कहा था कि जब सड़क की हालत खराब हो और निर्माण कार्य के चलते भारी जाम की स्थिति बनी हो, तो टोल वसूली उचित नहीं है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि एनएचएआई और जनता के बीच का संबंध “पब्लिक ट्रस्ट” का है और यातायात को सुचारु रूप से बनाए रखने में विफलता इस भरोसे का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट में बहस
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एनएचएआई की ओर से दलील दी कि मानसून की बारिश के कारण काम में देरी हुई, हालांकि सेवा सड़कों की व्यवस्था की गई थी। उन्होंने टोल वसूली को पूरी तरह निलंबित करने के बजाय ‘अनुपातिक कमी’ का सुझाव दिया। मगर न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा कि 12 घंटे की परेशानी किसी भी अनुपातिक समायोजन से कहीं अधिक है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जाम की स्थिति “ईश्वर की मर्जी” नहीं थी, बल्कि एक ट्रक के गड्ढे में पलटने के कारण हुई थी।
कंसेशनायर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवान ने कहा कि कंपनी ने अपने अधिकार क्षेत्र के 60 किलोमीटर हिस्से का रखरखाव किया है और सर्विस रोड की समस्याओं के लिए तीसरे पक्ष के ठेकेदार, जैसे पीएसजी इंजीनियरिंग, जिम्मेदार हैं। उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को “बेहद अनुचित” बताते हुए कहा कि सिर्फ 10 दिनों में 5–6 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है, जबकि दैनिक रखरखाव का खर्च जारी है।
पीठ ने हालांकि यह भी नोट किया कि हाईकोर्ट ने कंसेशनायर को हुए नुकसान के लिए एनएचएआई के खिलाफ दावा करने की अनुमति दी है।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
मूल याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मुत्तराज ने कहा कि मोटरेबल रोड (चलने योग्य सड़क) सुनिश्चित करना एनएचएआई की जिम्मेदारी है। उन्होंने दलील दी कि ऐसी हालत में टोल वसूली जनता के साथ विश्वासघात है। हाईकोर्ट ने पहले अंतरिम निर्देश दिए थे और अंत में “अंतिम उपाय” के तौर पर टोल निलंबित करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को ही कहा था कि वह हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने के पक्ष में नहीं है। अब इस मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया गया है।