सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार से कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति को लेकर सवाल किया और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को नियमित नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश शीघ्र भेजने का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ अधिवक्ता हेनरी टिपाग्ने द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में राज्य सरकार द्वारा 31 अगस्त को जी. वेंकट्रमान को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने के निर्णय को चुनौती दी गई है।
पीठ ने राज्य सरकार से पूछा, “आपके पास कार्यवाहक डीजीपी क्यों है?”

राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि एक अधिकारी ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) में याचिका दायर कर अपने नाम को पैनल में शामिल करने की मांग की थी, जिसके चलते नियमित नियुक्ति नहीं हो सकी।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया, “हम यूपीएससी से अनुरोध करते हैं कि वह मामले पर शीघ्र विचार करे। यूपीएससी की सिफारिश प्राप्त होने पर राज्य सरकार नियमित डीजीपी नियुक्त करने की प्रक्रिया पूरी करे।”
याचिका में तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह फैसले (2018) के अनुसार, राज्यों को डीजीपी पद पर रिक्ति की आशंका होने से कम से कम तीन माह पहले यूपीएससी को प्रस्ताव भेजना अनिवार्य है, ताकि समय पर नियमित नियुक्ति की जा सके।
अब अदालत के आदेश के बाद तमिलनाडु सरकार और यूपीएससी पर यह जिम्मेदारी है कि वे तय प्रक्रिया का पालन कर शीघ्र नियमित डीजीपी की नियुक्ति सुनिश्चित करें।