सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर चुनाव आयोग (ECI) से कई तीखे सवाल पूछे।
मुख्य न्यायाधीशों की पीठ एक याचिका समूह पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को “मनमाना” और “असंवैधानिक” करार देते हुए इसे चुनौती दी गई है। कोर्ट ने आयोग से स्पष्ट रूप से पूछा कि यह प्रक्रिया चुनाव के ठीक पहले ही क्यों कराई जा रही है और आधार कार्ड को मान्य पहचान पत्रों की सूची से क्यों बाहर रखा गया है।
कोर्ट ने सवाल किया, “बिहार में विशेष सघन पुनरीक्षण को नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से क्यों जोड़ा गया है? ऐसे अभ्यास चुनावी समय-सीमा से स्वतंत्र रूप से क्यों नहीं किए जा सकते?”

इसके अलावा कोर्ट ने आधार को प्रक्रिया से बाहर रखने पर भी चिंता जताई। “बिहार SIR में आधार को क्यों बाहर रखा गया है?” इस पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया, “आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।”
पीठ ने यह भी टिप्पणी की, “अगर आप SIR के तहत नागरिकता की जांच करना चाहते हैं, तो यह प्रक्रिया पहले शुरू होनी चाहिए थी, अब यह थोड़ी देर से हो रही है।”
चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा कि मतदाता सूची को समय-समय पर अद्यतन करना आवश्यक है ताकि योग्य मतदाताओं को जोड़ा जा सके और अपात्र लोगों के नाम हटाए जा सकें। आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूची का पुनरीक्षण वैध है, लेकिन वर्तमान प्रक्रिया को लेकर गंभीर चिंताएं हैं।
अब तक इस पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ कम से कम दस याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं, जिनमें तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा सहित अन्य राजनीतिक नेता और संगठन शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया में वोटर आईडी और आधार जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों की अनदेखी की जा रही है, और कुछ वर्गों को छूट दी गई है, जिससे इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि पिछली बार ऐसी सघन पुनरीक्षण प्रक्रिया 2003 में कराई गई थी और वर्तमान प्रक्रिया संविधान के अनुरूप है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह मतदाता सूची को अद्यतन करने के सिद्धांत से असहमत नहीं है, लेकिन चुनावी वर्ष में इसकी समय-सीमा और पारदर्शिता पर जरूर सवाल है।
मामले की सुनवाई जारी है।