विवाह का वादा कर सहमति से बनाए गए संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने युवक पर चल रही पॉक्सो कार्रवाई रद्द की

सुप्रीम कोर्ट ने एक युवक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज बलात्कार के मामले को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि विवाह के वादे पर सहमति से बना शारीरिक संबंध बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता, और इस मामले में तीन साल बाद दर्ज प्राथमिकी तथा किसी प्रत्यक्ष सबूत की अनुपस्थिति इसे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बनाती है।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने युवक द्वारा दायर आपराधिक अपील स्वीकार करते हुए कहा कि जिस प्रकार हाईकोर्ट ने आरोपी के माता-पिता और चाचा के खिलाफ कार्यवाही रद्द की थी, वैसा ही निर्णय मुख्य आरोपी के संबंध में भी लिया जाना चाहिए था।

मामला क्या है

प्राथमिकी में युवक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 417 (धोखाधड़ी), 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक धमकी) सहपठित धारा 34 के साथ-साथ पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता, जो प्राथमिकी दर्ज कराते समय बालिग थी, ने आरोप लगाया था कि लगभग तीन वर्ष पहले जब वह 15 वर्ष की थी, तब युवक ने उससे विवाह का वादा कर उसके साथ संबंध बनाए।

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उसका आरोप था कि बालिग होने के बाद आरोपी ने विवाह से इनकार कर दिया और उसके परिजनों ने उसे अपमानित किया, जिसके चलते उसने आरोपी युवक और उसके परिजनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई।

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कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरोपी के माता-पिता और चाचा के खिलाफ प्राथमिकी रद्द कर दी थी, लेकिन मुख्य आरोपी के खिलाफ कार्यवाही को जारी रखा था, जिसे चुनौती देते हुए आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

राज्य और शिकायतकर्ता की ओर से यह दलील दी गई कि नाबालिग की सहमति वैध नहीं मानी जाती और इसलिए बलात्कार का मामला बनता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस आरोप के समर्थन में कोई साक्ष्य, विशेषकर कोई फॉरेंसिक साक्ष्य मौजूद नहीं है।

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पीठ ने कहा, “यह केवल एक प्राथमिकी का आरोप है, जिसमें तीन साल बाद यह कहा गया कि जब शिकायतकर्ता नाबालिग थी, तब बलात्कार किया गया। वह स्वयं भी यह स्वीकार करती है कि संबंध उसकी सहमति से बने क्योंकि आरोपी ने विवाह का वादा किया था।”

अदालत ने Prithivirajan v. State, Pramod Suryabhan Pawar v. State of Maharashtra, और Maheshwar Tigga v. State of Jharkhand जैसे पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:

“इस न्यायालय ने कई निर्णयों में यह माना है कि विवाह का वादा कर बनाए गए सहमति वाले शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता और इसके पीछे स्पष्ट कारण दिए गए हैं।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

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“मामले की परिस्थितियों और अभियोजन पक्ष के पास मौजूद साक्ष्यों, विशेषकर प्राथमिकी दर्ज करने में हुई अत्यधिक देरी को देखते हुए यह कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे जारी नहीं रखा जा सकता।”

अदालत ने लंबित सभी अंतरिम याचिकाओं को भी निस्तारित कर दिया।

मामला: कुणाल चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।
अपील संख्या: विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 7004/2025

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