सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय अधिकरण (NCLAT) के एक न्यायिक सदस्य द्वारा लगाए गए इस चौंकाने वाले आरोप पर जांच के आदेश दिए हैं कि उन्हें “देश की उच्च न्यायपालिका के एक अत्यंत सम्मानित सदस्य” द्वारा लंबित मामले में पक्ष विशेष के पक्ष में आदेश देने के लिए संपर्क किया गया।
सूत्रों के अनुसार, जांच सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल द्वारा की जाएगी और उसके नतीजों के आधार पर आगे की कार्रवाई तय होगी।
एनसीएलएटी की चेन्नई पीठ के न्यायिक सदस्य जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने 13 अगस्त को एक मामले से खुद को अलग करते हुए यह खुलासा खुले न्यायालय में किया।
दो अनुच्छेदों वाले आदेश में उन्होंने लिखा:
“हम व्यथित हैं कि हममें से एक, न्यायिक सदस्य, को इस देश की उच्च न्यायपालिका के एक सम्मानित सदस्य द्वारा किसी विशेष पक्ष के पक्ष में आदेश देने हेतु संपर्क किया गया। अतः, मैं इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग करता हूं।”

उनके अलग होने के बाद, अधिकरण ने मामले को किसी अन्य उपयुक्त पीठ को सौंपने का अनुरोध किया।
यह मामला हैदराबाद स्थित केएलएसआर इंफ्राटेक के निलंबित निदेशक ए.एस. रेड्डी द्वारा दायर अपील से जुड़ा है। कंपनी के खिलाफ दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू की गई थी। यह प्रक्रिया हैदराबाद एनसीएलटी ने 14 जुलाई 2023 को ए.एस. मेट कॉर्प प्रा. लि. की याचिका पर शुरू की थी।
मामले की सुनवाई के बाद अपीलीय अधिकरण ने 18 जून को फैसला सुरक्षित रख लिया था और दोनों पक्षों को सात दिन में लिखित दलीलें दाखिल करने का समय दिया था। यह मामला 13 अगस्त को चेन्नई पीठ के दो सदस्यीय खंडपीठ (जस्टिस शर्मा और तकनीकी सदस्य जतिन्द्रनाथ स्वैन) के समक्ष फैसला सुनाने के लिए सूचीबद्ध था, लेकिन उसी दिन अप्रत्याशित रूप से यह अलग होने का आदेश पारित हुआ।
जस्टिस शरद कुमार शर्मा 31 दिसंबर 2023 को उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे और 19 फरवरी 2024 को एनसीएलएटी में न्यायिक सदस्य के रूप में शामिल हुए। उन्होंने पहले भी कई अहम मामलों से खुद को अलग किया था, जिनमें बायजूस (Byju’s), जेप्पियार सीमेंट्स और रामलिंगा मिल्स से जुड़े मामले शामिल हैं।