सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे उस 2022 के फैसले के पुनर्विचार के लिए उठाए गए याचिकाओं में स्पष्ट रूप से तय किए जाने वाले मुद्दों को तैयार करें, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ED) को धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत व्यापक शक्तियां दी गई थीं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (केंद्र की ओर से) और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (याचिकाकर्ताओं की ओर से) की दलीलें सुनीं। अदालत पहले ही दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर पुनर्विचार करने को सहमत हो चुकी है—(1) आरोपी को प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) की प्रति देना, और (2) धारा 24 के तहत अभियोजन पक्ष पर से भार हटाकर आरोपी पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का बोझ डालना।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने दलील दी कि पुनर्विचार उन्हीं दो सीमित मुद्दों तक सीमित रहना चाहिए, जैसा कि अगस्त 2022 में याचिकाओं को स्वीकार करते समय आदेश में संकेत किया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि यद्यपि अदालत ने आदेश में इन दो पहलुओं को स्पष्ट रूप से नहीं लिखा था, लेकिन केंद्र ने अगले दिन एक हलफनामा दायर कर यह स्थिति स्पष्ट कर दी थी, जिसे याचिकाकर्ताओं ने तब अस्वीकार नहीं किया।

वहीं सिब्बल ने तर्क दिया कि अदालत का आदेश सरकार के हलफनामे पर प्राथमिकता रखता है और उन्होंने मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने की सिफारिश की। साथ ही उन्होंने प्रक्रिया से जुड़ी बातों को अंतिम रूप देने के लिए शीघ्र तिथि तय करने की अपील भी की।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत मसौदा मुद्दों पर असंतोष जताते हुए कहा कि सहायक वकीलों को “बेहतर तैयारी” करनी चाहिए थी। इसके बाद अदालत ने मामले को 16 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया ताकि सुनवाई से पहले मुद्दों को अंतिम रूप दिया जा सके। मुख्य सुनवाई 6 अगस्त से शुरू होगी और आवश्यकता पड़ने पर 7 अगस्त को जारी रहेगी।
यह पुनर्विचार जुलाई 2022 के उस ऐतिहासिक फैसले के बाद हो रहा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ED को पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती, तलाशी और ज़ब्ती जैसी शक्तियों को वैध ठहराया था। अदालत ने यह भी कहा था कि पीएमएलए के तहत काम करने वाले अधिकारी “पुलिस अधिकारी” नहीं माने जाते, और हर मामले में ECIR की प्रति देना आवश्यक नहीं है, बशर्ते गिरफ्तारी के कारण स्पष्ट रूप से बताए जाएं।
वह फैसला 200 से अधिक याचिकाओं के जवाब में आया था, जिनमें पीएमएलए की विभिन्न धाराओं को चुनौती दी गई थी। आलोचकों, विशेषकर विपक्षी दलों का आरोप है कि इस कानून का राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 45 की संवैधानिकता को भी बरकरार रखा था, जो पीएमएलए के अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाती है और ज़मानत के लिए दोहरी शर्तें लगाती है। अदालत ने इन प्रावधानों को न्यायसंगत और गैर-मनमाना बताया था।