सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 (POSH Act) के प्रावधानों का पालन करने के निर्देश देने की मांग की गई है।
यह याचिका अधिवक्ता योगमाया एमजी द्वारा दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल भी इस कानून के दायरे में आते हैं और उन्हें इसके तहत तय प्रक्रिया अपनानी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि खासकर जमीनी स्तर पर काम करने वाली महिला कार्यकर्ताओं को प्रचार अभियानों और दलगत कार्यों के दौरान यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, लेकिन उनके पास कोई प्रभावी कानूनी उपाय उपलब्ध नहीं होता।
योगमाया ने 2024 में भी इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्हें सक्षम प्राधिकारी के समक्ष जाने की अनुमति दी गई थी। इसके बाद उन्होंने निर्वाचन आयोग को एक प्रतिनिधित्व पत्र भेजा, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।

अधिवक्ता श्रीराम पी के माध्यम से दायर इस याचिका में केंद्र सरकार, भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाया गया है। याचिका में मांग की गई है कि सभी राजनीतिक दल POSH कानून का अनुपालन करें और अपनी पार्टी में आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) का गठन करें।
याचिका में संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन (UN Women) और इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा गया है कि राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के खिलाफ मानसिक और यौन उत्पीड़न व्यापक स्तर पर होता है। ऐसे में महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इस कानून के तहत सुरक्षा देना अत्यंत आवश्यक है।
याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता “कर्मचारी” की परिभाषा में आते हैं और उन्हें भी अन्य पेशों की महिलाओं की तरह कानून के तहत संरक्षण मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक विशाखा निर्णय और 2013 के कानून की भावना को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों पर भी यह कानून लागू होना चाहिए।