29 मई 2025 को सुनाए गए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी ऐसी भरण-पोषण राशि की हकदार है जो विवाह के दौरान उसे मिले जीवन स्तर को प्रतिबिंबित करे और उसके भविष्य को समुचित रूप से सुरक्षित रखे। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पत्नी को मिलने वाली स्थायी भरण-पोषण राशि को ₹20,000 प्रतिमाह से बढ़ाकर ₹50,000 प्रतिमाह कर दिया, जिसमें हर दो वर्ष पर 5% की वृद्धि का प्रावधान किया गया है।
पृष्ठभूमि
यह मामला पारिवारिक विवाद से संबंधित था, जिसकी सुनवाई पहले परिवार न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय में हुई। विवाह वर्ष 1997 में संपन्न हुआ था और वर्ष 1998 में एक संतान का जन्म हुआ। वर्ष 2008 में पति ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 27 के अंतर्गत पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की याचिका दायर की। पत्नी ने इसके जवाब में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 तथा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण की मांग की।
परिवार न्यायालय ने पत्नी को ₹8,000 प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण तथा मुकदमे की कार्यवाही के लिए ₹10,000 की राशि प्रदान की। बाद में दंड प्रक्रिया संहिता के तहत ₹8,000 पत्नी के लिए तथा ₹6,000 संतान के लिए मासिक भरण-पोषण की राशि निर्धारित की गई।
वर्ष 2016 में परिवार न्यायालय ने यह कहते हुए तलाक की याचिका खारिज कर दी कि क्रूरता सिद्ध नहीं हो सकी। परंतु उच्च न्यायालय ने इस आदेश को पलटते हुए मानसिक क्रूरता और वैवाहिक संबंधों के पूर्ण टूटने के आधार पर तलाक की डिग्री प्रदान कर दी। साथ ही उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश भी दिए:
- वह फ्लैट जहां पत्नी और संतान निवासरत हैं, उसका बंधक हटाकर स्वामित्व पत्नी के नाम स्थानांतरित किया जाए;
- पत्नी और पुत्र को उक्त फ्लैट में निवास की अनुमति बनी रहे;
- ₹20,000 प्रतिमाह की स्थायी भरण-पोषण राशि दी जाए, जिसमें हर तीन वर्ष में 5% की वृद्धि हो;
- पुत्र की विश्वविद्यालय शिक्षा हेतु व्यय और ₹5,000 प्रतिमाह निजी ट्यूशन के लिए वहन किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही
पत्नी ने उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित स्थायी भरण-पोषण की राशि को अपर्याप्त बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। 20 फरवरी 2023 को शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर नोटिस जारी किया। 7 नवंबर 2023 को अंतरिम आदेश के तहत ₹75,000 प्रतिमाह की अस्थायी राशि निर्धारित की गई, चूंकि पति की ओर से सेवा के बावजूद कोई प्रस्तुति नहीं दी गई थी।
बाद में पति ने उपस्थिति दर्ज कराते हुए उक्त अंतरिम आदेश को रद्द करने का आग्रह किया। उसने बताया कि उसकी वर्तमान मासिक शुद्ध आय ₹1,64,039 है, जो कि कोलकाता स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट में नौकरी से प्राप्त होती है। उसने यह भी कहा कि उसका कुल मासिक खर्च ₹1,72,088 है, वह पुनर्विवाहित है और एक आश्रित परिवार तथा वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण करता है।
दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि ₹20,000 की राशि पहले अंतरिम भरण-पोषण के रूप में तय की गई थी, जिसे बिना समुचित मूल्यांकन के अंतिम भरण-पोषण बना दिया गया। उसने यह भी कहा कि पति की मासिक आय लगभग ₹4,00,000 है, जो पहले ताज होटल में उसकी नियुक्ति के दौरान थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“प्रतिवादी-पति की आय, वित्तीय विवरण और पूर्व की आय से यह स्थापित होता है कि वह अधिक राशि का भुगतान करने में सक्षम है।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया:
“अपीलकर्ता-पत्नी, जिसने विवाह के पश्चात दोबारा विवाह नहीं किया और स्वतंत्र रूप से रह रही है, वह उस जीवन स्तर के अनुरूप भरण-पोषण की हकदार है जो उसने विवाह के दौरान अनुभव किया और जो उसके भविष्य को उचित सुरक्षा प्रदान करे।”
अदालत ने यह भी कहा:
“वर्तमान महंगाई और पत्नी की आर्थिक निर्भरता को देखते हुए भरण-पोषण की राशि का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।”
इसके परिणामस्वरूप, अदालत ने आदेश दिया:
“₹50,000 प्रतिमाह की राशि अपीलकर्ता-पत्नी की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु न्यायोचित, उचित और वाजिब होगी। यह राशि प्रत्येक दो वर्षों में 5% की वृद्धि के अधीन होगी।”
जहाँ तक पुत्र का संबंध है, जो अब 26 वर्ष का है, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि उसके लिए किसी अनिवार्य वित्तीय सहायता का निर्देश नहीं दिया जाएगा, परंतु पिता स्वेच्छा से शैक्षिक या अन्य आवश्यक व्ययों में सहायता कर सकते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि पुत्र के उत्तराधिकार संबंधी अधिकार अप्रभावित रहेंगे।
अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को इस सीमा तक संशोधित किया कि स्थायी भरण-पोषण की राशि ₹50,000 प्रतिमाह होगी और इसमें हर दो वर्ष में 5% की वृद्धि लागू होगी। संबंधित अवमानना याचिका को भी इसी के अनुसार समाप्त कर दिया गया।